कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 13 प्रेमचन्द की कहानियाँ 13प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेरहवाँ भाग
‘एक पैसे के बतासे लूँगी और एक पैसे का रंग। जोड़े तो रँगे जाएँगे कि नहीं?’
‘तो दो पैसे में तेरा काम चल जाएगा?’
‘हाँ, दो पैसे दे दो भैया, तो मेरी गुड़िया का ब्याह धूमधाम से हो जाए।’
मोहन ने दो पैसे हाथ में लेकर मैना को दिखाए। मैना लपकी, मोहन ने हाथ ऊपर उठाया, मैना ने हाथ पकड़कर नीचे खींचना शुरू किया। मोहन ने उसे गोद में उठा लिया। मैना ने पैसे ले लिये और नीचे उतरकर नाचने लगी। फिर अपनी सहेलियों को विवाह का नेवता देने के लिए भागी। उसी वक्त बूटी गोबर का झाँवा लिये आ पहुंची। मोहन को खड़े देखकर कठोर स्वर में बोली- अभी तक मटरगस्ती ही हो रही है। भैंस कब दुही जाएगी?
आज बूटी को मोहन ने विद्रोह-भरा जवाब न दिया। जैसे उसके मन में माधुर्य का कोई सोता-सा खुल गया हो। माता को गोबर का बोझ लिये देखकर उसने झाँवा उसके सिर से उतार लिया। बूटी ने कहा- रहने दे, रहने दे, जाकर भैंस दुह, मैं तो गोबर लिये जाती हूँ।
‘तुम इतना भारी बोझ क्यों उठा लेती हो, मुझे क्यों नहीं बुला लेतीं?’
माता का हृदय वात्सल्य से गदगद हो उठा। ‘तू जा अपना काम देखं मेरे पीछे क्यों पड़ता है!’
‘गोबर निकालने का काम मेरा है।’
‘और दूध कौन दुहेगा?’
‘वह भी मैं करूँगा!’
‘तू इतना बड़ा जोधा है कि सारे काम कर लेगा!’
‘जितना कहता हूँ, उतना कर लूँगा।’
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