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			 कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 17 प्रेमचन्द की कहानियाँ 17प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग
तैमूर ने विजय से भरी आँखें उठाईं और सेनापति यजदानी की ओर देख कर सिंह के समान गरजा- क्या चाहते हो ज़िन्ददगी या मौत। 
यजदानी ने गर्व से सिर उठाकार कहा- इज्जत की जिन्दगी मिले तो जिन्दगी, वरना मौत। 
तैमूर का क्रोध प्रचंण्ड हो उठा उसने बड़े-बड़े अभिमानियों का सिर नीचा कर दिया था। यह जबाब इस अवसर पर सुनने की उसे ताब न थी। इन एक लाख आदमियों की जान उसकी मुठठी में है। इन्हें वह एक क्षण में मसल सकता है। उस पर इतना अभिमान। इज्जत की जिन्दगी । इसका यही तो अर्थ हैं कि गरीबों का जीवन अमीरों के भोग-विलास पर बलिदान किया जाए वही शराब की मजलिसें, वही अरमीनिया और काफ की परियाँ। नहीं, तैमूर ने खलीफा बायजीद का घमंड इसलिए नहीं तोडा है कि तुर्कों को फिर उसी मदांध स्वाधीनता में इस्लाम का नाम डुबाने को छोड दे। तब उसे इतना रक्त बहाने की क्या जरूरत थी। मानव-रक्त का प्रवाह संगीत का प्रवाह नहीं, रस का प्रवाह नहीं- एक बीभत्स दश्य है, जिसे देखकर आँखें मुँह फेर लेती हैं दृश्य सिर झुका लेता है। तैमूर हिंसक पशु नहीं है, जो यह दृश्य देखने के लिए अपने जीवन की बाजी लगा दे। 
वह अपने शब्दों में धिक्कार भरकर बोला- जिसे तुम इज्जत की जिन्दगी कहते हो, वह गुनाह और जहन्नुम की जिन्दगी है। 
यजदानी को तैमूर से दया या क्षमा की आशा न थी। उसकी या उसके योद्वाओं की जान किसी तरह नहीं बच सकती। फिर वह क्यों दबे और क्यों न जान पर खेलकर तैमूर के प्रति उसके मन में जो घृणा है, उसे प्रकट कर दे? उसने एक बार कातर नेत्रों से उस रूपवान युवक की ओर देखा, जो उसके पीछे खडा, जैसे अपनी जवानी की लगाम खींच रहा था। सान पर चढे हुए, इस्पात के समान उसके अंग-अंग से अतुल कोध्र की चिनगारियाँ निकल रहीं थीं। यजदानी ने उसकी सूरत देखी और जैसे अपनी खींची हुई तलवार म्यान में कर ली और खून के घूट पीकर बोला- जहाँपनाह इस वक्त फतहमंद हैं लेकिन अपराध क्षमा हो तो कह दूँ कि अपने जीवन के विषय में तुर्कों को तातारियों से उपदेश लेने की जरूरत नहीं। पर जहाँ खुदा ने नेमतों की वर्षा की हो, वहाँ उन नेमतों का भोग न करना नाशुक्री है। अगर तलवार ही सभ्यता की सनद होती, तो गाल कौम रोमनों से कहीं ज्यादा सभ्य होती। 
तैमूर जोर से हँसा और उसके सिपाहियों ने तलवारों पर हाथ रख लिए। तैमूर का ठहाका मौत का ठहाका था या गिरनेवाला वज्र का तडाका। 
			
						
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