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प्रेमचन्द की कहानियाँ 17

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :281
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9778

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग


मानसिंह ने कहा- ‘काकाजी, पापी चन्द्रसिंह तो यमपुर पहुंच गया और लालवा यह खड़ी है। हम लोग बन्दी होकर नहीं आये हैं। वीर दुर्गादास ने माड़ों का नहीं सोजितगढ़ का भी राजा बना दिया। पापी इनायत खां कहीं भाग गया। अब गढ़ी पर राजपूती झंडा फहरा रहा है।

महासिंह को तो कदाचित ही कभी पहले ऐसे प्यारे शब्दों को सुनने का अवसर मिला हो, खुशी से फूला न समाया। हृदय धड़कने लगा। तुरन्त पलंग से उठकर वीर दुर्गादास को गले लगा लिया। फिर मानसिंह और लालवा को प्यार से छाती से लगाया। तेजबा, जो इस समय दूसरे कमरे में थी, बाहर आदमियों की बोलचाल सुनकर अपने कमरे के द्वार पर आ खड़ी हुई और बातचीत सुनने लगी। लालवा का नाम सुनते ही चौंकी, छाती धड़कने लगी, अपनी करतूत पर आप ही पछताने और लजाने लगी। मानसिंह ने लालवा की एक-एक बात मानसिंह से कह सुनाई। महासिंह थोड़ी देर चुप बैठा रहा। न जाने क्या-क्या सोच गया! फिर लालवा को तेजबा के पास भेज दिया। रात एक पहर से कम रह गई थी। वीर दुर्गादास ने सब थके हुए राजपूतों को विश्राम करने की आज्ञा दी। शेष रात आनन्द से कटी। सवेरा हुआ। सोजितगढ़ के आस-पास के गांवों के रहने वाले राजपूतों ने जब सोजितगढ़ पर राजपूती झंडा फहराते देख, तो बड़े आश्चर्य में आये और पता लगाने लगे। अब उन्हें अपनी विजय का विश्वास हुआ और झुण्ड-के-झुण्ड सोजितगढ़ आने लगे। जितने राजपूत सरदार दिल्ली की लड़ाई से बच आये थे,धीरे-धीरे सभी अपनी-अपनी सेना लेकर वीर दुर्गादास की सहायता के लिए इकट्ठे हो गये। अब सोजितगढ़ में चारों ओर हथियारबन्द राजपूत सेना-ही-सेना दिखाई पड़ने लगी। जिसे देखिए वह मारू राग ही गाता था और अकेले ही दिल्ली पर जय पाने का साहस दिखाता था। वीर दुर्गादास ने राजपूतों को ऐसा उत्साही देख ईश्वर को धन्यवाद दिया और जोधपुर पर चढ़ाई करना निश्चित किया। सब सरदारों ने हां-में-हां मिलाई। जब यह बात तेजबा को मालूम हुई तो झीखने लगी। मानसिंह को अपने पास बुलाकर कहा- ‘बेटा! हमारा संदेश दुर्गादास को सुनाओ और कहो, यह कौन-सी चतुराई है कि जीतकर भी हार लेने चले हैं। इन लोगों को नाले से निकालकर अब समुद्र में डालना चाहते हैं? आप तो सोजितगढ़ छोड़कर जोधपुर युद्ध करने जाते हो, हमारी रक्षा कैसे होगी? यदि दुर्गादास ऐसा करना ही चाहते हैं, तो हमारे पीहर भेज दें और आप जो चाहें करें।

मानसिंह ने कहा- ‘काकी, यह कौन कहता है कि तुम्हें अकेले ही सोजितगढ़ में छोड़ दिया जायेगा? यहां गढ़ी की रक्षा के लिए एक हजार सेना रखी जायेगी और वीर रूपसिंह उदावत सेनानायक रहेंगे; क्योंकि अभी वे लड़ाई के योग्य नहीं है, यद्यपि घाव सूख गये हैं।

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