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प्रेमचन्द की कहानियाँ 26

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9787

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छब्बीसवाँ भाग


जयगोपाल खबर पाते ही आसाम से चले आए और जमींदारी का इंतजाम करने लगे।

जयगोपाल अब पहले का-सा बेफ़िक्र, मनमौजी, स्वेच्छाचारी आदमी न था। अब वह शातिर उच्च कोटि का बुद्धिमान, विवेकी दुनियादार बाबू बन गया था। उसे रुपए की चाट पड़ गई थी और हरदम इसी धुन में रहता। परदेश में उसने खूब कमाया और खूब खर्च किया। चाय के बाग़ों में अनुचित वासनातृप्ति के बेशुमार मौके हैं। उनसे उसने खूब दिल खोलकर फ़ायदा उठाया। खुलासा यह कि उसके मिजाज में अब छिछोरापन आ गया था और कुंदन जैसी सीधी, भोली औरत, जिसकी निगाहों ने सामने ताकना नहीं सीखा था, अब उसके दिल को काबू में न रख सकती थी। उसने एक लंबी अवधि के बाद अपने शौहर को फिर पाया था और उसकी दिलजोई और खातिरदारी में पहले से भी ज्यादा सरगर्म हो गई थी। मगर ज्यूँ-ज्यूँ नज़दीक आने की कोशिश करती, त्यूँ-त्यूँ जयगोपाल उससे दूर भागता था।

जयगोपाल ने पहले दिन ही से नौनीचंद के साथ बेगानापन का बरताव करना शुरू किया। उसकी तरफ़ देखता तो नफ़रत के साथ, बात करता तो कटु लहजे में। कुंदन भाई की- मोहब्बत में शौहर को अपना शरीक बनाना चाहती थी, लेकिन अगर वह कभी गोद में लेकर जयगोपाल के पास चली जाती तो वह नफ़रत से मुंह फेर लेता। कुछ दिनों तक गरीब कुंदन ने बहुत कोशिश की कि किसी तरह जयगोपाल के दिल में सफ़ाई हो जाए; मगर आखिरकार उसे मालूम हो गया कि उसने नौनी का कसूर अब तक नहीं माफ़ किया और न अब इसकी आशा थी और वह कसूर क्या था? पैदा होना।

पहले जब कभी नौनी और उसके भांजों में जंग होती तो कुंदन हमेशा अपने भाई की तरफ़ रहा करती। इसलिए उनको नौनी के साथ सख्ती से पेश आने की हिम्मत न होती थी, मगर अब अदालत का रुख पलट गया था। नए मुंसिफ़ ने आकर नया कानून जारी किया था, जो फ़रियाद करता था उसी को सजा होती थी। जब कभी जयगोपाल नौनी को मारते और वह अपनी बड़ी-बड़ी आँखों में आँसू भरे आहिस्ता-आहिस्ता कुंदन के पास आता तो वह उसे गोद में उठा लेती और मकान के किसी गोशे में जाकर खूब रोती और जब तक. नौनी उसे चुप न करता, रोया करती। ज्यों-ज्यों जयगोपाल नौनी के साथ ज्यादा बेरहमी करते, त्यों-त्यों कुंदन के दिल में उसकी मोहब्बत ज्यादा होती।

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