कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 32 प्रेमचन्द की कहानियाँ 32प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बत्तीसवाँ भाग
अहल्या- रुपये का लोभ आदमी को शक्की बना देता है।
रात को एक बजा था। डॉक्टर जयपाल भयानक स्वप्न देख रहे थे। एकाएक अहल्या ने आ कर कहा जरा चल कर देखिए, जगिया का क्या हाल हो रहा है। जान पड़ता है, जीभ ऐंठ गयी। कुछ बोलती ही नहीं, आँखें पथरा गयी हैं।
डॉक्टर चौंक कर उठ बैठे। एक क्षण तक इधर-उधर ताकते रहे; मानो सोच रहे थे, यह भी स्वप्न तो नहीं है। तब बोले क्या कहा ! जगिया को क्या हो गया?
अहल्या ने फिर जगिया का हाल कहा। डॉक्टर के मुख पर हलकी-सी मुस्कराहट दौड़ गयी। बोले- चोर पकड़ा गया ! मूठ ने अपना काम किया।
अहल्या- और जो घर ही के किसी आदमी ने ले लिये होते?
डॉक्टर- तो उसकी भी यही दशा होती, सदा के लिए सीख जाता।
अहल्या- पाँच सौ रुपये के पीछे प्राण ले लेते?
डॉक्टर- पाँच सौ रुपये के लिए नहीं, आवश्यकता पड़े तो पाँच हजार खर्च कर सकता हूँ, केवल छल-कपट का दंड देने के लिए।
अहल्या- बड़े निर्दयी हो।
डॉक्टर- तुम्हें सिर से पैर तक सोने से लाद दूँ तो मुझे भलाई का पुतला समझने लगो, क्यों? खेद है कि मैं तुमसे यह सनद नहीं ले सकता।
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