कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 35 प्रेमचन्द की कहानियाँ 35प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग
रामचन्द्र ने पहले तो उन्हें बहुत समझाया कि आप लोगों ने मेरे ऊपर जो उपकार किये हैं, वही काफी हैं, अब और अधिक उपकारों के बोझ से न दबाइये। किन्तु जब उन लोगों ने बहुत आग्रह किया तो विवश होकर उन लोगों को भी साथ ले लिया। सबके-सब विमान में बैठे और विमान हवा में उड़ चला। रामचन्द्र और सीता में बातें होने लगीं। दोनों ने अपने-अपने वृत्तान्त वर्णन किये। विमान हवा में उड़ता चला जाता था। जिस रास्ते से आये थे उसी रास्ते से जा रहे थे। रास्ते में जो प्रसिद्ध स्थान आते थे, उन्हें रामचन्द्र जी सीता जी को दिखा देते थे। पहले समुद्र दिखायी दिया। उस पर बंधा हुआ पुल देखकर सीता जी को बड़ा आश्चर्य हुआ। फिर वह स्थान आया, जहां रामचन्द्र ने बालि को मारा था। इसके बाद किष्किन्धापुरी दिखाई दी। रामचन्द्र ने कहा- जिस राजा सुग्रीव की सहायता से हमने लंका विजय की, उनका मकान यही है। सीता जी ने सुग्रीव की रानी से भेंट करने की इच्छा प्रकट की, इसलिए विमान रोक दिया गया, और लोग सुग्रीव के घर उतरे। तारा ने सीता जी के गले में फूलों की माला पहनायी और अपने साथ महल में ले गयी। सुग्रीव ने अपने प्रतिष्ठित अतिथियों की अभ्यर्थना की और उन्हें दोचार दिन रोकना चाहा, किन्तु रामचन्द्र कैसे रुक सकते थे। दूसरे दिन विमान फिर रवाना हुआ। सुग्रीव इत्यादि भी उस पर बैठकर चले। रामचन्द्र जी से उन लोगों को इतना प्रेम हो गया कि उनको छोड़ते हुए इन लोगों को दुःख होता था।
रामचन्द्र ने फिर सीता जी को मुख्य-मुख्य स्थान दिखाना प्रारम्भ किया। देखो, यह वह वन है जहां हम तुम्हें तलाश करते फिरते थे। अहा, देखो, वह छोटीसी झोंपड़ी जो दिखायी दे रही है वही शबरी का घर है। यहां रात भर हमने जो आराम पाया, उतना कभी अपने घर भी न पाया था। यह लो, वह स्थान आ गया जहां पवित्र जटायु से हमारी भेंट हुई थी। वह उसकी कुटी है। केवल दीवारें शेष रह गयी हैं। जटायु ने हमें तुम्हारा पता न बताया होता, तो ज्ञात नहीं कहां-कहां भटकते फिरते। वह देखा पंचवटी है। वह हमारी कुटी है। कितना जी चाहता है कि चल कर एक बार उस कुटी के दर्शन कर लूं। सीता जी इस कुटी को देखकर रोने लगीं। आह! यहां से उन्हें रावण हर ले गया था। वह दिन, वह घड़ी कितनी अशुभ थी कि इतने दिनों तक उन्हें एक अत्याचारी की कैद में रहना पड़ा। रावण का वह साधुओं का सा वेश उनकी आंखों में फिर गया। आंसू किसी प्रकार न थमते थे। कठिनता से रामचन्द्र ने उन्हें समझा कर चुप किया। विमान और आगे बढ़ा। अगस्त्य मुनि का आश्रम दिखायी दिया। रामचन्द्र ने उनके दर्शन किए, किन्तु रुकने का अवकाश न था, इसलिए थोड़ी देर के बाद फिर विमान रवाना हुआ। चित्रकूट दिखायी दिया। सीताजी अपनी कुटी देखकर बहुत प्रसन्न हुईं। कुछ देर बाद प्रयाग दिखायी दिया। यहां भारद्वाज मुनि का आश्रम था। रामचन्द्र ने विमान को उतारने का आदेश दिया और मुनि जी की सेवा में उपस्थित हुए। मुनि जी उनसे मिलकर बहुत प्रसन्न हुए। बड़ी देर तक रामचन्द्र उन्हें अपने वृत्तान्त सुनाते रहे। फिर और बातें होने लगीं। रामचन्द्र ने कहा- महाराज! मुझे तो आशा न थी कि फिर आपके दर्शन होंगे। किन्तु आपके आशीर्वाद से आज फिर आपके चरणस्पर्श का अवसर मिल गया।
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