कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 35 प्रेमचन्द की कहानियाँ 35प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग
भरद्वाज बोले- बेटा! जब तुम यहां से जा रहे थे, उस समय मुझे जितना दुःख हुआ था, उससे कहीं अधिक प्रसन्नता आज तुम्हारी वापसी पर हो रही है।
राम- आपको अयोध्या के समाचार तो मिलते होंगे?
भरद्वाज- हां बेटा, वहां के समाचार तो मिलते रहते हैं! भरत तो अयोध्या से दूर एक गांव में कुटी बना कर रहते हैं; किन्तु शत्रुघ्न की सहायता से उन्होंने बहुत अच्छी तरह राज्य का कार्य संभाला है। प्रजा प्रसन्न है। अत्याचार का नाम भी नहीं है। किन्तु सब लोग तुम्हारे लिए अधीर हो रहे हैं। भरत तो इतने अधीर हैं कि यदि तुम्हें एक दिन की भी देर हो गयी तो शायद तुम उन्हें जीवित न पाओ।
रामचन्द्र ने उसी समय हनुमान को बुलाकर कहा- तुम अभी भरत के पास जाओ, और उन्हें मेरे आने की सूचना दो। वह बहुत घबरा रहे होंगे। मैं कल सवेरे यहां से चलूंगा। यह आज्ञा पाते ही हनुमान अयोध्या की ओर रवाना हुए और भरत का पता पूछते हुए नन्दिग्राम पहुंचे। भरत ने ज्योंही यह शुभ समाचार सुना उन्हें मारे हर्ष के मूर्छा आ गयी। उसी समय एक आदमी को भेजकर शत्रुघ्न को बुलवाया और कहा- भाई, आज का दिन बड़ा शुभ है कि हमारे भाई साहब चौदह वर्ष के देश निकाले के बाद अयोध्या आ रहे हैं। नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि लोग अपने-अपने घर दीप जलायें और इस प्रसन्नता में उत्सव मनावें। सवेरे तुम उनके उत्सव का प्रबन्ध करके यहां आना। हम सब लोग भाई साहब की अगवानी करने चलेंगे।
दूसरे दिन सबेरे रामचन्द्र जी भरद्वाज मुनि के आश्रम से रवाना हुए। जिस अयोध्या की गोद में पले और खेले, उस अयोध्या के आज फिर दर्शन हुए। जब अयोध्या के बड़े-बड़े ऐश्वर्यशाली प्रासाद दिखायी देने लगे, तो रामचन्द्र का मुख मारे प्रसन्नता के चमक उठा। उसके साथ ही आंखों से आंसू भी बहने लगे। हनुमान से बोले- मित्र, मुझे संसार में कोई स्थान अपनी अयोध्या से अधिक प्रिय नहीं। मुझे यहां के कांटे भी दूसरी जगह के फूलों से अधिक सुन्दर मालूम होते हैं। वह देखो, सरयू नदी नगर को अपनी गोद में लिये कैसा बच्चों की तरह खिला रही है। यदि मुझे भिक्षुक बनकर भी यहां रहना पड़े तो दूसरी जगह राज्य करने से अधिक प्रसन्न रहूंगा। अभी वह यही बातें कर रहे थे कि नीचे हाथी, घोड़ों, रथों का जुलूस दिखायी दिया। सबके आगे भरत गेरुवे रंग की चादर ओ़ढ़े, जटा बढ़ाये, नंगे पांव एक हाथ में रामचन्द्र की खड़ाऊं लिये चले आ रहे थे। उनके पीछे शत्रुघ्न थे। पालकियों में कौशिल्या, सुमित्रा और कैकेयी थीं। जुलूस के पीछे अयोध्या के लाखों आदमी अच्छे-अच्छे कपड़े पहने चले आ रहे थे। जुलूस को देखते ही रामचन्द्र ने विमान को नीचे उतारा। नीचे के आदमियों को ऐसा मालूम हुआ कि कोई बड़ा पक्षी पर जोड़े उतर रहा है। कभी ऐसा विमान उनकी दृष्टि के सामने न आया था। किन्तु जब विमान नीचे उतर आया, लोगों ने बड़े आश्चर्य से देखा कि उस पर रामचन्द्र, सीता और लक्ष्मण और उनके नायक बैठे हुए हैं। जय-जय की हर्षध्वनि से आकाश हिल उठा।
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