कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
कुनाल के नेत्र आँसुओं से
भर आये, और
वह उठकर टहलने लगे। धर्मरक्षिता भी अपने कार्य में लगी। मधुर पवन भी उस
भूमि में उसी प्रकार चलने लगा। कुनाल का हृदय अशान्त हो उठा, और वह टहलता
हुआ कुछ दूर निकल गया। जब नगर का समीपवर्ती प्रान्त उसे दिखाई पड़ा, तब वह
रुक गया और उसी ओर देखने लगा।
पाँच-छ: मनुष्य दौड़ते
हुए चले आ
रहे हैं। वे कुनाल के पास पहुँचना ही चाहते थे कि उनके पीछे बीस अश्वारोही
देख पड़े। वे सब-के-सब कुनाल के समीप पहुँचे। कुनाल चकित दृष्टि से उन
सबको देख रहा था।
आगे दौड़कर आनेवालों ने
कहा- महाराज, हम लोगों को बचाइये।
कुनाल
उन लोगों को पीछे करके आप आगे डटकर खड़ा हो गया। वे अश्वारोही भी उस युवक
कुनाल के अपूर्व तेजोमय स्वरूप को देखकर सहमकर, उसी स्थान पर खड़े हो गये।
कुनाल ने उन अश्वारोहियों से पूछा- तुम लोग इन्हें क्यों सता रहे हो? क्या
इन लोगों ने कोई ऐसा कार्य किया है, जिससे ये लोग न्यायत: दण्डभागी समझे
गये हैं?
एक अश्वारोही, जो उन
लोगों का नायक था, बोला- हम लोग
राजकीय सैनिक हैं, और राजा की आज्ञा से इन विधर्मी जैनियों का बध करने के
लिये आये हैं। पर आप कौन हैं, जो महाराज चक्रवर्ती देवप्रिय अशोकदेव की
आज्ञा का विरोध करने पर उद्यत हैं?
कुनाल- चक्रवर्ती अशोक!
वह कितना बड़ा राजा है?
नायक-
मूर्ख! क्या तू अभी तक महाराज अशोक का पराक्रम नहीं जानता, जिन्होंने अपने
प्रचण्ड भुजदण्ड के बल से कलिंग-विजय किया है? और, जिनकी राज्य-सीमा
दक्षिण में केरल और मलयगिरि, उत्तर में सिन्धुकोश-पर्वत, तथा पूर्व और
पश्चिम में किरात-देश और पटल हैं! जिनकी मैत्री के लिये यवन-नृपति लोग
उद्योग करते रहते हैं, उन महाराज को तू भलीभाँति नहीं जानता?
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