कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
कुनाल- परन्तु इससे भी
बड़ा कोई साम्राज्य है, जिसके लिये किसी राज्य की
मैत्री की आवश्यकता नहीं है।
नायक- इस विवाद की
आवश्यकता नहीं है, हम अपना काम करेंगे।
कुनाल- तो क्या तुम लोग
इन अनाथ जीवों पर कुछ दया न करोगे?
इतना कहते-कहते राजकुमार
को कुछ क्रोध आ गया, नेत्र लाल हो गये। नायक उस
तेजस्वी मूर्ति को देखकर एक बार फिर सहम गया।
कुनाल ने कहा- अच्छा, यदि
तुम न मानोगे, तो यहाँ के शासक से जाकर कहो कि
राजकुमार कुनाल तुम्हें बुला रहे हैं।
नायक सिर झुकाकर कुछ
सोचने लगा। तब उसने अपने एक साथी की ओर देखकर कहा-
जाओ, इन बातों को कहकर, दूसरी आज्ञा लेकर जल्द आओ।
अश्वारोही शीघ्रता से नगर
की ओर चला। शेष सब लोग उसी स्थान पर खड़े थे।
थोड़ी
देर में उसी ओर से दो अश्वारोही आते हुए दिखाई पड़े। एक तो वही था,जो भेजा
गया था, और दूसरा उस प्रदेश का शासक था। समीप आते ही वह घोड़े पर से उतर
पड़ा और कुनाल का अभिवादन करने के लिए बढ़ा। पर कुनाल ने रोक कर कहा- बस,
हो चुका, मैंने आपको इसलिये कष्ट दिया है कि इन निरीह मनुष्यों की हिंसा
की जा रही है।
शासक- राजकुमार! आपके
पिता की आज्ञा ही ऐसी है, और आपका यह वेश क्या है?
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