कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“नहीं, यहाँ कोई रक्षक
नहीं है।”
“आज तुमने कौन-सी माला
बनाई है?”
“यही कामिनी की माला बना
रही थी।”
“तुम्हारा नाम क्या है?”
“कामिनी।”
“वाह!
अच्छा, तुम इस माला को पूरी करो, मैं लौटकर-उसे लूँगा।” डरने पर भी मालिन
ढीठ थी। उसने कहा-”धूप निकल आने पर कामिनी का सौरभ कम हो जायगा।”
“मैं शीघ्र आऊँगा”-कहकर
राजकुमार चले गये।
मालिन
ने माला बना डाली। किरणें प्रतीक्षा में लाल-पीली होकर धवल हो चलीं।
राजकुमार लौटकर नहीं आये। तब उसी ओर चली-जिधर राजकुमार गये थे।
युवती बहुत दूर न गई होगी
कि राजकुमार लौटकर दूसरे मार्ग से उसी स्थान पर
आये। मालिन को न देखकर पुकारने लगे-”मालिन! ओ मालिन!”
दूरागत
कोकिल की पुकार-सा वह स्वर उसके कान में पड़ा था। वह लौट आई। हाथों में
कामिनी की माला लिये वह वन-लक्ष्मी के समान लौटी। राजकुमार उसी
दिन-सौन्दर्य को सकुतूहल देख रहे थे। कामिनी ने माला गले में पहना दी।
राजकुमार ने अपना कौशेय उष्णीश खोलकर मालिन के ऊपर फेंक दिया। कहा-”जाओ,
इसे पहनकर आओ।” आश्चर्य और भय से लताओं की झुरमुट में जाकर उसने
आज्ञानुसार कौशेय वसन पहना।
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