कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
बाहर आई, तो उज्ज्वल
किरणें उसके
अंग-अंग पर हँसते-हँसते लोट-पोट हो रही थीं। राजकुमार मुस्कराये और
कहा-”आज से तुम इस कुसुम-कानन की वन-पालिका हुई हो। स्मरण रखना।”
राजकुमार चले गये। मालिन
किंकर्तव्यविमूढ़ होकर मधूक-वृक्ष के नीचे बैठ
गई।
बसन्त
बीत गया। गर्मी जलाकर चली गई। कानन में हरियाली फैल रही थी। श्यामल घटायें
आकाश में और शस्य-शोभा धरणी पर एक सघन-सौन्दर्य का सृजन कर रही थी।
वन-पालिका के चारों ओर मयूर घेरकर नाचते थे। सन्ध्या में एक सुन्दर उत्सव
हो रहा था। रजनी आई। वन-पालिका के कुटीर को तम ने घेर लिया। मूसलाधार
वृष्टि होने लगी। युवती प्रकृति का मद-विह्वल लास्य था। वन-पालिका
पर्ण-कुटीर के वातायन से चकित होकर देख रही थी। सहसा बाहर कम्पित कण्ठ से
शब्द हुआ-”आश्रय चाहिए!” वन-पालिका ने कहा-”तुम कौन हो?”
“एक अपराधी।”
“तब यहाँ स्थान नहीं है।”
“विचार
कर उत्तर दो, कहीं आश्रय न देकर तुम अपराध न कर बैठो।” वन-पालिका विचारने
लगी। बाहर से फिर सुनाई पड़ा-”विलम्ब होने से प्राणों की आशंका है।”
वन-पालिका
निस्संकोच उठी और उसने द्वार खोल दिया। आगन्तुक ने भीतर प्रवेश किया। वह
एक बलिष्ठ युवक था, साहस उसकी मुखाकृति थी। वन-पालिका ने पूछा-”तुमने
कौन-सा अपराध किया है?”
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