कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
चम्पा
ने युवक जलदस्यु के समीप आकर उसके क्षतों को अपनी स्निग्ध दृष्टि और कोमल
करों से वेदना विहीन कर दिया। बुधगुप्त के सुगठित शरीर पर रक्त-बिन्दु
विजय-तिलक कर रहे थे।
विश्राम लेकर बुधगुप्त ने
पूछा “हम लोग कहाँ होंगे?”
“बालीद्वीप
से बहुत दूर, सम्भवत: एक नवीन द्वीप के पास, जिसमें अभी हम लोगों का बहुत
कम आना-जाना होता है। सिंहल के वणिकों का वहाँ प्राधान्य है।”
“कितने दिनों में हम लोग
वहाँ पहुँचेंगे?”
“अनुकूल पवन मिलने पर दो
दिन में। तब तक के लिये खाद्य का अभाव न होगा।”
सहसा
नायक ने नाविकों को डाँड़ लगाने की आज्ञा दी, और स्वयं पतवार पकड़कर बैठ
गया। बुधगुप्त के पूछने पर उसने कहा- ”यहाँ एक जलमग्न शैलखण्ड है। सावधान
न रहने से नाव टकराने का भय है।”
“तुम्हें इन लोगों ने
बन्दी क्यों बनाया?”
“वणिक् मणिभद्र की
पाप-वासना ने।”
“तुम्हारा घर कहाँ है?”
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