कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“जाह्नवी
के तट पर। चम्पा-नगरी की एक क्षत्रिय बालिका हूँ। पिता इसी मणिभद्र के
यहाँ प्रहरी का काम करते थे। माता का देहावसान हो जाने पर मैं भी पिता के
साथ नाव पर ही रहने लगी। आठ बरस से समुद्र ही मेरा घर है। तुम्हारे आक्रमण
के समय मेरे पिता ने ही सात दस्युओं को मारकर जल-समाधि ली। एक मास हुआ,
मैं इस नील नभ के नीचे, नील जलनिधि के ऊपर, एक भयानक अनन्तता में निस्सहाय
हूँ - अनाथ हूँ। मणिभद्र ने मुझसे एक दिन घृणित प्रस्ताव किया। मैंने उसे
गालियाँ सुनाईं। उसी दिन से बन्दी बना दी गई।”- चम्पा रोष से जल रही थी।
“मैं भी ताम्रलिप्ति का
एक क्षत्रिय हूँ, चम्पा! परन्तु दुर्भाग्य से
जलदस्यु बन कर जीवन बिताता हूँ। अब तुम क्या करोगी?”
“मैं
अपने अदृष्ट को अनिर्दिष्ट ही रहने दूँगी। वह जहाँ ले जाय।” - चम्पा की
आँखें निस्सीम प्रदेश में निरुद्देश्य थी। किसी आकांक्षा के लाल डोरे न
थे। धवल अपांगों में बालकों के सदृश विश्वास था। हत्या-व्यवसायी दस्यु भी
उसे देखकर काँप गया। उसके मन में एक सम्भ्रमपूर्ण श्रद्धा यौवन की पहली
लहरों को जगाने लगी। समुद्र-वक्ष पर विलम्बमयी राग-रञ्जित सन्ध्या थिरकने
लगी। चम्पा के असंयत कुन्तल उसकी पीठ पर बिखरे थे। दुर्दान्त दस्यु ने
देखा, अपनी महिमा में अलौकिक एक तरुण बालिका! वह विस्मय से अपने हृदय को
टटोलने लगा। उसे एक नई वस्तु का पता चला। वह थी - कोमलता!
उसी समय नायक ने कहा- ”हम
लोग द्वीप के पास पहुँच गये।”
बेला
से नाव टकराई। चम्पा निर्भीकता से कूद पड़ी। माँझी भी उतरे। बुधगुप्त ने
कहा-”जब इसका कोई नाम नहीं है, तो हम लोग इसे चम्पा-द्वीप कहेंगे।”
चम्पा हँस पड़ी।
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