धर्म एवं दर्शन >> काम कामरामकिंकर जी महाराज
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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन
कामी दुःखी हो गये पर असुर बड़े प्रसन्न हुए। भगवान् शंकर काम के इस बलिदान को समझ गये। इसलिए रति जब विलाप करते हुए उनके पास आयी तो उन्होंने काम को अशरीरी रूप में जीवित रहने का आशीर्वाद दे दिया।
काम को जला देने तथा उसे पुनर्जीवित करने के पीछे भी एक महत्त्वपूर्ण संकेत निहित है। बहुत सी ऐसी विषैली वस्तुएँ होती हैं कि जिनको सीधे यदि उसी रूप में लें, तो वे प्राण भी ले सकती हैं। पर आप जानते ही हैं कि आजकल सर्प-विष से भी दवाएँ बनती हैं। प्राचीन काल से आज तक विषैली जड़ी-बूटियाँ दवा के रूप में प्रयोग में आती रही हैं। योग्य वैद्य उनका इस तरह शोधन या परिमार्जन करते हैं कि उस प्रक्रिया से गुजर कर विष भी दवा के रूप में उपयोगी हो जाता है। भगवान् शंकर भी काम को जलाकर मानो 'भस्म' के रूप में बदल देते हैं और फिर जीवित कर देते हैं जिससे वह अनर्थ का कारण न बनकर लोक कल्याणकारी बन जाय। पर रति को इससे प्रसन्नता नहीं होती। वह भगवान्. शंकर से प्रार्थना करती है- ''महाराज! मुझे अशरीरी काम से संतोष नहीं हो सकता। आप मेरे पति को शरीर भी प्रदान करने की कृपा करें।'' भगवान् शंकर ने कहा - ''घबराओ मत! जब यदुवंश में भगवान् कृष्ण अवतार लेंगे, तब तुम्हारा पति उनके पुत्र के रूप में जन्म लेगा-''
होइहि हरन महा महि मारा।।
कृष्न तनय होइहि पति तोरा।
वचनु अन्यथा होइ न मोरा।। 1/87/ 1,2
मानो सूत्र यह है कि काम चाहे घोड़ा बने चाहे पुत्र बने, ईश्वर से अवश्य जुड़ा रहे, जिससे काम की वह वृत्ति जो व्यक्ति के विचार और विवेक का ध्वंस कर देती है, वह मर्यादा का अतिक्रमण करती है, उसमें परिवर्तन हो। इसलिए हमें काम को कल्याणकारी और मर्यादापूर्ण बनाने के लिये उसे भी भगवान् राम से जोड़ना है, भगवान् कृष्ण से जोड़ना है!
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