धर्म एवं दर्शन >> काम कामरामकिंकर जी महाराज
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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन
'क्षोभ' शब्द के अर्थ पर यदि हम एक दृष्टान्त के माध्यम से विचार करें, तो कह सकते हैं कि दूध में यदि रात में 'जामन' डाल दिया जाय तो दूसरे दिन सुबह उस दूध के परिवर्तित रूप को देखकर हम कहते हैं कि 'दही जम गया'। पर कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बिना 'जामन' डाले बर्तन की गंदगी या किसी अन्य खटाई आदि के कारण भी दूध का रूप बदल जाता है और देखने में वह दही से मिलता-जुलता सा दिखायी भी देता है, पर उसे देखकर कोई यह नहीं कहता कि 'दही जम गया' वहाँ यही कहते हैं कि 'दूध फट गया'। यद्यपि 'जमने' और 'फटने' दोनों में ही दूध का रूप बदल गया पर अंतर यही है कि जमने का अर्थ है कि जैसा हमने चाहा वैसा ही परिवर्तन हुआ और फटने का अर्थ है कि जैसा गंदगी ने चाहा वैसा रूप दे दिया। इसी प्रकार हम कह सकते हैं कि काम जामन भी बन सकता है और विकार या खटाई भी बन सकता है। काम यहाँ लोक कल्याण के लिये 'क्षोभ' उत्पन्न करता है अत: खटाई या विकार के रूप में न होकर जामन के रूप में सामने आता है।
भगवान् शंकर को लगा कि अरे! मेरे मन में काम कहीं से आ गया? क्रोध से उन्होंने नेत्र खोलकर सामने देखा और ज्योंही उनकी दृष्टि पड़ी, आम की डाल पर बैठा हुआ काम तुरंत ही जलकर भस्म हो गया। काम के जलने की बात तारकासुर के भी कानों में पड़ी। वह अत्यन्त प्रसन्न हो गया और उसने आज्ञा दी - ''बाजे बजाओ!'' देवताओं के द्वारा शंकरजी के पास काम को भेजे जाने के समाचार से वह बहुत डरा हुआ था, इसलिए मदन-दहन की सूचना से वह प्रसन्नता से नाचने लगा कि चलो! अब तो सब झंझट ही समाप्त हो गया। गोस्वामीजी कहते हैं कि -
समुझि कामसुख सोचहिं भोगी।
भए अकंटक साथक जोगी।। 1/86/7-8
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