धर्म एवं दर्शन >> कृपा कृपारामकिंकर जी महाराज
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मानसिक गुण - कृपा पर महाराज जी के प्रवचन
नहीं, नहीं मैं जानता हूँ कि वे मेरा स्वागत नहीं करेंगे, अपितु आज तो प्रभु बाण से मेरा वध करेंगे। मारीच मन ही मन उत्तर देता है। बात बड़ी विचित्र-सी लगती है। व्यक्ति यह सोचकर तो प्रसन्न हो सकता है कि स्वागत होगा, माला पहनायी जायेगी, पर आश्चर्य! मारीच यह सोचकर प्रसन्न हो रहा है कि प्रभु अपने बाण से मेरा वध करेंगे। प्रभु से भेंट की कल्पना से प्रसन्न होनेवाले कई पात्र मानस में हैं। विभीषणजी भी प्रभु के पास चलने लगे तो बड़े प्रसन्न थे। पर वे यही सोचकर प्रसन्न थे कि प्रभु मुझे अपने हृदय से लगा लेंगे और मैं उनकी कृपा पाकर धन्य हो जाऊँगा। पर मारीच तो अनोखा निकला। कहता है कि मेरा कितना बड़ा सौभाग्य है कि प्रभु मुझ पर बाण चलायेंगे। अब इसके पीछे मारीच की जो मधुर और दिव्य भावना है उसे हम समझ लें। मान लीजिये! कभी आपको किसी फल विशेष का एक छोटा सा भाग चखने को मिला हो और उस छोटे से हिस्से को ही खाकर आपको बहुत अधिक आनंद आ गया हो। अब, यदि कोई आपसे यह कह दे कि वही फल पूरा का पूरा ही खाने को मिलेगा, तो क्या आपका आनंद अनेकों गुना नहीं बढ़ जायगा? ठीक यही मनःस्थिति मारीच की है।
भगवान् राम का बाण मारनेवाला है, ऐसा लोगों को लगता है, पर भगवान् राम के बाण के फल का स्वाद तो सचमुच मारीच ही जानता है। पहली बार भगवान् राम ने जिस बाण से मारीच पर प्रहार किया वह बिना फल का था --
सत जोजन गा सागर पारा।। 1/206/4
और इस बिना फल के बाण प्रहार का परिणाम यह हुआ कि सर्वत्र उसको श्री राम ही दिखने लगे। वह कहता है कि-
मारीच का तात्पर्य है कि जो लोग बाण की मिठास नहीं जानते वे घबराते हैं, पर मैं तो समझ गया हूँ कि प्रभु का बाण तो बड़ा दिव्य है। जब बिना फल का बाण लगा तब तो वे सर्वत्र दिखने लगे थे अब, जब फल-सहित पूरा बाण लगेगा तब तो वह उनसे मिला ही देगा। अब तो उनके और मेरे बीच की दूरी पूरी तरह मिट जायगी। इससे तो यही स्पष्ट होता है कि प्रभु की कठोरता और न्याय में भी उनकी कृपा एवं करुणा विद्यमान रहती है। विश्वामित्रजी के साथ प्रभु की इस यात्रा में कृपा का एक और भी दृष्टान्त हमारे सामने आता है।
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