लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> क्रोध

क्रोध

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9813

Like this Hindi book 0

मानसिक विकार - क्रोध पर महाराज जी के प्रवचन


वर्णन आता है कि एक बार भुशुण्डि जी भगवान् शिव के मंदिर में बैठकर जप कर रहे थे। उसी समय उनके गुरुदेव भी वहाँ पर आ गये। शिष्य का यह कर्तव्य होता है कि गुरुजी के आने पर वह उठकर उनका स्वागत करें। यद्यपि भुशुण्डिजी ने गुरुजी को देख लिया था, पर उन्होंने उठकर उनका स्वागत-अभिवादन नहीं किया। वे जानबूझकर बैठे रहे और आँखें बंदकर ऐसा स्वाँग बनाया कि जैसे उन्होंने गुरुजी को देखा ही नहीं। गुरुदेव तो सरल-संत प्रकृति के थे, अत: शांत ही रहे पर इस उपेक्षा को भगवान् शंकर नहीं सह सके और उन्हें क्रोध आ गया।

भगवान् शंकर के चरित्र में क्रोध की जो स्वीकृति दिखायी देती है उसका भी एक तात्पर्य है। वस्तुत: क्रोध के अनेक रूप हैं। भगवान् शंकर तो त्रिभुवन गुरु हैं। इस रूप में वे मन के रोगों के परम वैद्य हैं। शरीर के रोगों को दूर करने के लिये, ठीक उसी प्रकार से गुरु के पास जाना पड़ता है। शरीर के रोगों के संदर्भ में हम देखते हैं कि डाक्टर किसी को मीठी दवा देता है और किसी को कड़वे स्वाद वाली दवा देता है। मन के रोगों के संदर्भ में भी यही बात सत्य है। गुरुदेव भी मन के रोगों को दूर करने के लिये जो दवाएँ बताते हैं वे भी कड़वी-मीठी हो सकती हैं।

हमारे काशी में एक वैद्य रहते थे। एक बार एक सज्जन उनके पास आये और कहने लगे- ''वैद्यजी! कोई ऐसा स्वादिष्ट चूर्ण दीजिए जो चटपटा और मीठा हो।'' सुनकर वैद्यजी बिगड़ खड़े हुए और कहने लगे कि 'यह चटनी-चूर्ण की दुकान नहीं है, दवाखाना है, यहाँ दवा दी जाती है,' और उस व्यक्ति को वहाँ से भगा दिया। इसका अर्थ यह है कि वैद्य रोग को दूर करने की दृष्टि से ही दवा देता है, स्वाद-पूर्ति के लिये तो देता नहीं, इसलिए दवा मीठी भी हो सकती है और कड़वी भी हो सकती है।

भगवान् शंकर के द्वारा किया जाने वाला क्रोध भी मानो एक दवा ही है। भुशुण्डिजी के गुरुदेव को भले ही क्रोध नहीं आया, पर त्रिभुवन गुरु- गुरुणाम् गुरु: भगवान् शंकर को क्रोध आ गया। इसका उद्देश्य क्या था? क्योंकि क्रोध यदि दवा के रूप में हो तो रोगी उससे स्वस्थ होगा और उसको क्रोध यदि आवेश, अहंकार या बदले की भावना से, प्रतिक्रिया के रूप में होगा तो उसके द्वारा क्रोध करने वाला तथा जिस पर क्रोध किया जाय, उन दोनों की ही हानि होगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book