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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


उन्हें लगा कि यही अवसर है जब जनता की माँग को ढृढता-पूर्वक प्रकट करना चाहिये और शासन-पद्धति में सुधार करा लेने का आग्रह रखना चाहिये। मैंने अंग्रेजो की इस आपत्ति के समय अपनी माँगे पेश करना ठीक न समझा औऱ लड़ाई के समय अधिकारो की माँग को मुलतवी रखने के सयम में सभ्यता और दूरदृष्टि का दर्शन किया। इसलिए मैं अपनी सलाह पर ढृढ रहा और मैंने लोगों से कहा कि जिन्हें स्वयंसेवको की भरती में नाम लिखाने हो वे लिखावे। काफी संख्या में नाम लिखाये गये। उनमें लगभग सभी प्रान्तो और सभी धर्मो के लोगों के नाम थे। मैंने इस विषय में लार्ड क्रू को पत्र लिखा और हिन्दुस्तानियो की माँग को स्वीकार करने के लिए घायल सैनिको को सेवा की तालीम लेना आवश्यक माना जाय तो वैसी तालीम लेने की इच्छा और तैयारी प्रकट की। थोड़े विचार-विमर्श के बाद लार्ड क्रू ने हिन्दुस्तानियो की माँग स्वीकार कर ली और संकट के समय में साम्राज्य की सहायता करने की तैयारी दिखाने के लिए आभार प्रदर्शित किया।

नाम देनेवालो ने प्रसिद्ध डॉ. केंटली के अधीन घायलो की सेवा-शुश्रूशा करने की प्राथमिक तालीम का श्रीगणेश किया। छह हफ्तो का छोटा-सा शिक्षाक्रम था, पर उसमें घायलो को प्राथमिक सहायता देने की सब क्रियाएँ सिखायी जाती थी। हम लगभग 80 क्यक्ति इस विशेष वर्ग में भरती हुए। छह हफ्ते बाद परीक्षा ली गयी, जिसमे एक ही व्यक्ति नापास हुआ। जो पास हो गये उनके लिए अब सरकार की ओर से कवायद वगैरा सिखाने का प्रबन्ध किया गया। कवायद सिखाने का काम कर्नल बेकर को सौपा गया और वे इस टुकड़ी के सरदार नियुक्त किये गये।

इस समय विलायत का दृश्य देखने योग्य था। लोग घबराते नहीं थे, बल्कि सब लड़ाई में यथाशक्ति सहायता करने में जुट गये थे। शक्तिशाली नवयुवक तो लड़ाई की ट्रेनिंग लेने लगे। पर कमजोर, बूढे और स्त्रियाँ आदि क्या करे? चाहने पर उनके लिए भी काम तो था ही। वे लड़ाई में घायल हुए लोगों के लिए कपड़े वगैरा सीने-कटाने में जुट गये। वहाँ स्त्रियाँ का 'लाइसियम' नामक एक क्लब है। इस क्लब की सदस्याओ ने युद्ध-विभाग के लिए आवश्यक कपड़ो में से जितन कपड़े बनाये जा सके उतने बनाने का बोझ अपने ऊपर लिया। सरोजिनी देवी उसकी सदस्या थी। उन्होंने इस काम में पूरा हिस्सा लिया। मेरे साथ उनका यह पहला परिचय था। उन्होंने मेरे सामने ब्योते हुए कपड़ो का ढेर लगा दिया औऱ जितने सिल सके उतने सी-सिलाकर उनके हवाले कर देने को कहा। मैंने उनकी इच्छा का स्वागत किया और घायलो की सेवा के शिक्षाकाल में जितने कपड़े तैयार हो सके उतने तैयार करवा कर उन्हें दे दिये।

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