लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा

धर्म की समस्या


ज्यो ही खबर दक्षिण अफ्रीका पहुँची कि हममे से कुछ इकट्ठा होकर युद्ध ने काम करने के लिए अपने नाम सरकार के पास भेजे है, त्यो ही मेरे नाम वहाँ से दो तार आये। उनमें एक पोलाक का था। उसमें पूछा गया था, 'क्या आपका कार्य अहिंसा के आपके सिद्धान्त के विरुद्ध नहीं है?'

ऐसे तार की मुझे कुछ आशा ता थी ही। क्योंकि 'हिन्द स्वराज्य' में मैंने इस विषय की चर्चा की थी और दक्षिण अफ्रीका में मित्रों के साथ तो इसकी चर्चा निरन्तर होती ही रहती थी। युद्ध की अनीति को हम सब स्वीकार करते थे। जब मैं अपने ऊपर हमला करने वाले पर मुकदमा चलाने को तैयार न था, तो दो राज्यो के बीच छिड़ी हुई लड़ाई में, जिसके गुण-दोष का मुझे पता न था, मैं किस प्रकार सम्मिलित हो सकता था? यद्यपि मित्र जानते थे कि मैंने बोअर-युद्ध में हाथ बँटाया था, फिर भी उन्होंने ऐसा मान लिया था कि उसके बाद मेरे विचारो में परिवर्तन हुआ होगा।

असल में जिस विचारधारा के वश होकर मैं बोअर-युद्ध में सम्मिलित हुआ था, उसी का उपयोग मैंने इस बार भी किया था। मैं समझता था कि युद्ध में सम्मिलित होने का अहिंसा के साथ कोई मेंल नहीं बैठ सकता। किन्तु कर्तव्य का बोध हमेशा दीपक की भाँति स्पष्ट नहीं होता। सत्य के पुजारी को बहुत ठोकरें खानी पड़ती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book