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कहानी संग्रह >> कुमुदिनी

कुमुदिनी

नवल पाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9832

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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है

कमला बोली- देखिए जी, मेरी तरफ से इनको कोई शिकायत नहीं होगी। मैं अपने छोटे देवर को अपने जी से भी ज्यादा प्यार करूंगी। बहुत दिनों में ये आए हैं। मैं अपने देवर को कोई दुख नहीं होने दूंगी। अभी तो ये आए हैं और अभी आप दुकान के लिए कह रहे हैं। मेरा फूल के जैसा देवर काम करेगा। नहीं जी, मैं इन्हें दुकान पर नहीं जाने दूंगी। यह तो मेरे पास ही रहेगा और फिर अभी इसकी उम्र भी क्या हुई है। मैं ना करने दूंगी इन्हें दुकान-बुकान।

यह सुनकर लीलामणी ने कहा- चलो जैसी तुम्हारी मर्जी। अपने देवर को चाहे जैसे रखो। मैं तुम्हारे बीच नहीं आने वाला। बहुत देर उनकी बातें सुनने के बाद हजारी प्रसाद ने कहा- तुम मुझ पर बहुत प्रेम दिखा रहे हो। इससे मैं बड़ा खुश हूं, मगर मैं तुम्हारे पास कितने दिन रहूंगा। मैं चाहता हूं कि कल सुबह ही मैं चला जाऊं। मैं अपनी ससुराल चन्दनपुर जाऊंगा। कुछ दिन वहां ठहर कर कोई कारोबार करूंगा। और हां वहां से आते समय मैं आपके पास जरूर आऊंगा।

यह सुनकर कमला ने कहा- अब आए हो तो दो-चार रोज हमारे पास रुक जाते तो हमारा मन भी तुम्हारे साथ-साथ बहल जाता और आज तक भी कभी तुम दो-चार घंटे से ज्यादा नहीं रुके। अब आए हो तो रुकना ही पड़ेगा।

हारकर हजारी प्रसाद ने कहा- ठीक है भाभी। जैसी आपकी इच्छा, मगर चार दिन से ज्यादा नहीं रुकूंगा।

चार दिन उनके पास ऐसे बीते कि पता ही नहीं चला। पता भी कैसे चलता, सभी सदा हंसते-खेलते रहते। चौथे दिन हजारी प्रसाद ने कहा- अच्छा भाभी, आज आप मुझे जाने की आज्ञा दें।

आँखों में आंसू भरते हुए कमला ने कहा- देखिए देवरजी, आप यहां थे तो हमारा मन भी खूब लगा। अब आप चले जायेंगे तो घर सूना-सूना हो जाएगा।

यह सुनकर हजारी प्रसाद कहने लगा कि- जो प्यार मुझे यहां पर आपने दिया उसका मैं एहसान जीवन भर नहीं भूलूंगा। पर अब तो मुझे जाना ही पड़ेगा। अतः अब आपसे विदा चाहता हूं।

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