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कहानी संग्रह >> कुमुदिनी

कुमुदिनी

नवल पाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9832

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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है

लाजवन्ती ने सोचा- यह पुरुष कौन है जो मुझे इतना जानता है। गौर से देखने पर उसे पता चला कि यह तो उसका पति हजारी प्रसाद है और यह उसे मरवाने के साथ-साथ उसके घरवालों की बड़ी बदनामी करेगा। यह सोचकर और खुद को बचाने की चक्कर में वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी- बचाओ-बचाओ बचाओ। रात के अन्धेरे में यह अजनबी मुझे छेड़ रहा है।

गांव के सभी लोग इकट्ठा हुए। सभी ने उसको पकड़े हुए देखा। उसी समय सिपाही बुलाकर हजारी प्रसाद को जेल में बंद कर दिया गया। सेठ हजारी प्रसाद ने एक भले युवक को बुलाकर पूछा कि- ये बताओ, ये लड़की कौन है और किसकी पुत्री है।

तब उस भले आदमी ने कहा कि- ये सेठ धर्मचन्द की पुत्री है लाजवन्ती। बड़ी शरीफ है, परन्तु आज तुमने तो सारी सीमाएं तोड़ दी। क्या इज्जत रहेगी हमारे गांव में इसकी। जब इसके ससुराल वालों को ये खबर पता चलेगी, तो पता नहीं। ये हमारे गांव की इस लड़की को ले भी जायेंगे या नहीं।

दूसरे दिन हजारी प्रसाद को राजा के पास ले जाया गया। एक तरफ लाजवन्ती तो दूसरी तरफ हजारी प्रसाद था। राजा ने लाजवन्ती से पूछा तो उसने वही शाम वाली बातें बताई और पूरी सभा में कहा - इस विषय में मेरे मां-बाप को कोई न बताए अन्यथा उनके दिल पर क्या बीतेगी।

राजा ने हजारी प्रसाद से पूछा- तुम्हें इस विषय में कुछ कहना है।

हजारी प्रसाद ने ना में सिर हिलाया। अब राजा ने कहा- इस युवक ने हमारे राज्य के गांव में हमारी प्रजा, हमारी बेटी और हमारी इज्जत की तरफ आंख उठाई है। हम इसे सूली तोड़ने अर्थात फांसी की सजा सुनाते हैं। इसे आज शाम को जल्लाद फांसी पर लटका दें। ये हमारा हुक्म है।

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