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कहानी संग्रह >> कुमुदिनी

कुमुदिनी

नवल पाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9832

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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है

तभी हवा ने भी उसका साथ दिया और एक तेज हवा का झौंका आया जिससे सन के सूखे बीज आपस में टकराने से आवाज निकालने लगे और वह सन बाजे की भांति बजने लगा।

गीदड़ ने सोचा कि सचमुच इसके मामा की बारात आ रही है। कहीं इसने मुझे फंसवा दिया तो मैं बेकार में ही मारा जाऊंगा। यह सोचकर वह सन के खेतों में से ही दौड़ने लगा। अब वह गीदड़ जितना भी सन में से दौड़ता उतनी ही तेज वह सन बजता। इस प्रकार से प्रकार से वह गीदड़ डरता हुआ दौड़ता ही रहा। जब सारे खेत खत्म हो गये और आवाज आनी बंद हो गई तो एक जगह पर वह रुका और अपने शरीर की हालत देखी। उसके शरीर का बुरा हाल हो चुका था। सारे शरीर में कांटे लगे हुए थे। हर बाल उलझा हुआ था। उसने भगवान का शुक्रिया किया क्योंकि आज बड़ी मुश्किल से उसकी जान बची थी। उसके बाद उसने किसी जानवर को तंग नहीं किया। अब वह सादा जीवन जीने लगा था।


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