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जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधुरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9841

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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी


धीरे-धीरे अध्यापक के रूप में विधुशेखर शास्त्री, क्षितिमोहन सेन, कालीमोहन घोष, सी. एफ. ऐंड्रूज, विली पियर्सन, असित हालदार, नंदलाल बसु, नेपालचंद्र राय और दिनेन्द्रनाथ ठाकुर शांतिनिकेतन पहुंचे। इसके बाद पढ़ाई, चित्रकला और संगीत शिक्षा में नाम हो जाने के कारण आश्रम की स्थिति सुधर गईं। सन् 1921 में यह आश्रम 'विश्वभारती' बन गया। देश-विदेश के नामी विद्वान वहां आने लगे। सिल्वां लेवी, विंटरनित्स, स्टेन, कोनो वेनोआ, बगदानफ तुच्ची आदि विदेशी विद्वान अतिथि अध्यापक होकर वहां आए। सन् 1941 में कवि की मृत्यु के बाद भी यह विश्वविद्यालय गौरव के साथ आगे बढ़ रहा है। सन् 1951 में मौलाना आजाद और जवाहर लाल नेहरू की कोशिशों से इसकी सारी जिम्मेदारी भारत सरकार ने ले ली। अपनी मृत्यु से पहले महात्मा गांधी ने भी उन्हें ऐसा करने की सलाह दी थी।

तीन

इस सदी के आरंभिक दौर में लौटा जाए। सन् 1904 में भारत के बड़े लाट लार्ड कर्जन थे। उन्होंने बंगाल को दो हिस्सों में बांट दिया। यह बंटवारा धर्म के नाम पर किया गया था। बंगाल में इसका विरोध शुरू हुआ। रवीन्द्रनाथ ने भी आगे बढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने ''स्वदेशी समाज'' नाम से अपना भाषण पढ़ा। उन्होंने कहा, ''हमें गांवों की ओर देखने की जरूरत है, वहां पर देश के प्राण बसते हैं। हमें अपने गांवों को बचाना होगा। वहां एकता की भावना पैदा करनी होगी।

सन् 1905 में महर्षि देवेन्द्रनाथ चल बसे। उनकी उम्र भी हो गई थी। उनकी मृत्यु के बाद जोड़ासांको के ठाकुरबाड़ी की एकता कमजोर पड़ने लगी। द्विजेन्द्रनाथ हमेशा के लिए शांतिनिकेतन में रहने चले गए। सत्येन्द्रनाथ पहले ही अलग हो चुके थे। ज्योतिरिन्द्रनाथ कुछ दिनों के बाद रांची चले गए। वहां मोरावादी पहाड़ पर बने अपने मकान में रहने लगे। रवीन्द्रनाथ का अधिकतर समय शांतिनिकेतन में ही बीतता था। बीच-बीच में वे जोड़ासांको और शिलाईदह हो आते थे।

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