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जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधुरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9841

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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी


इसी समय गरमपंथियों ने भी अपनी कार्रवाई तेज कर दी। खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी नामक दो युवकों ने मुजफ्फरपुर के मजिस्ट्रेट किंग्सफोई की हत्या करने की बजाय गलती से बैरिस्टर केनेडी की पत्नी और उनकी बच्ची को बम से उड़ा दिया। इस खबर से पूरे देश में खलबली मच गई। इस घटना के कुछ दिन बाद ही मानिकतला के एक उजड़े बगीचे में बम का एक कारखाना पकड़ा गया। इन सारी घटनाओं से दु:खी होकर रवीन्द्रनाथ ने ''पथ और पाथेय'' नामक लेख चैतन्य पुस्तकालय में पढ़ा। वे हत्या के रास्ते को समस्या के समाधान का ठीक रास्ता नहीं मानते थे। उन्होंने इस लेख में कहा था - ''असल में बंगाली जाती ने अपने कायर होने की बात बहुत दिनों से सिर झुकाकर स्वीकार कर रखी है, शायद इसीलिए वर्तमान घटना के बारे में सही-गलत, हित-अहित का विचार न करने अपने कायर होने के अपमान को मिटाने की भावना से बंगाली बहुत खुश हो रहे हैं।''

सन् 1908 में शांतिनिकेतन में ऋतुओं पर मेले शुरू हुए। पर्जन्य महोत्सव, जो बाद में वर्षा मंगल में बदल गया, और शरद उत्सव। जब कवि अपने शांतिनिकेतन के विद्यालय के काम में बेहद मशगूल थे, ऐसे समय अचानक एक झमेला खड़ा हो गया। खुलना के मजिस्ट्रेट की अदालत से उनके नाम गवाही के लिए एक सम्मन आया।

खुलना के सेनहाटी राष्ट्रीय विद्यालय के एक अध्यापक हीरालाल सेन ने अपनी ''हुंकार'' नामक कविता की किताब रवीन्द्रनाथ के नाम भेंट की थी। उस किताब से सरकार की नाराजगी और उसमें रवीन्द्रनाथ का नाम छपा होने के कारण कवि को खुलना की अदालत में गवाही के लिए जाना पड़ा।

इसके बाद रवीन्द्रनाथ ने 'प्रायश्चित' नाम से एक नाटक लिखा। जसोर के राजा प्रतापादित्य उस नाटक के नायक थे। मगर रवीन्द्रनाथ ने उसमें धनंजय वैरागी नामक एक पात्र के जरिए उस नाटक को यादगार बना दिया। धनंजय वैरागी का चरित्र बाद के गांधीजी जैसा ही है। इस नाटक में कवि ने लगान न देने के आंदोलन को तथा अहिंसा को प्रमुखता दी थी, जिसे? बाद में गांधी जी ने भी आंदोलन का रूप दिया। धनंजय वैरागी अहिंसा का समर्थक था। रवीन्द्रनाथ बहुत दिनों से कह रहे थे कि भारतवर्ष के जो असली नेता होंगे वे सर्वत्यागी संन्यासी ही होंगे। उनकी यही भावना धनंजय वैरागी में नजर आई थी। बाद में ''मुक्तधारा'' नाटक में भी यही बात रवीन्द्रनाथ ने दूसरे रूप में लिखी। धनंजय वैरागी का चरित्र इस नाटक में भी है।

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