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जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधुरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9841

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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी


''गोरा'' उपन्यास खत्म होने के बाद रवीन्द्रनाथ ने ''गीतांजलि'' लिखना शुरू किया। इस समय शांतिनिकेतन में कवि के पच्चास साल पूरे कर लेने की खुशी में जलसा हुआ। उन्हीं दिनों ''राजा'' नाटक भी लिखा गया। इस नाटक को नौ साल बाद दुबारा मंच के लायक बनाकर उसका नाम ''अरूप रतन'' रखा गया। इसके बाद ''अचलायतन'' नाटक लिखा गया। ''जीवन स्मृति'' नाम से उन्होंने आत्मकथा भी लिखी। उस समय वे खूब लिख रहे थे। कुछ दिनों के बाद उन्होंने एक नया सांकेतिक नाटक ''डाकघर'' लिखा। उन्हीं दिनों ''जन गण मन अधिनायक'' गीत लिखा गया। जिसे सन् 1911 में कलकत्ता कांग्रेस में गाया गया। अगले साल ''ब्रह्मोत्सव'' में भी यही गीत गाया गया।

इन सब कामों के बीच अपनी जमींदारी में किसानों की बेहतरी के लिए भी वे चिंता कर रहे थे। उनके काम और चिट्ठियां इसकी गवाह हैं। उन्होंने शिलाईदह से अपने बेटे रवीन्द्रनाथ को एक चिट्ठी में लिखा - ''बोलपुर में एक चावल की मशीन चल रही है। ऐसी ही एक मशीन वहां भी उपयोगी होगी। यह अंचल तो धान का ही है। बोलपुर से ज्यादा धान की पैदावार यहां होती है। मेरी इच्छा है कि 5-10 रूपये चंदा करके यहां के अधिकतर किसान मिलकर अगर इस मशीन को लगा लें तो उनमें आपस में मिलजुल कर काम करने की असली भावना पैदा होगी।'' रवीन्द्रनाथ ने इस पत्र में किसानों के लिए कुटीर शिल्प को भी जरूरी बताया था। उन्होंने उन्हें पॉटरी और छाता तैयार करने की विधि सिखाने की भी कोशिश की। इसके अलावा पतिसर कृषि बैंक खोलकर किसानों के लिए आसान दरों पर ब्याज पर रूपये लेने का भी उन्होंने इंतजाम किया।

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