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जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधुरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9841

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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी


ऐसे समय उन्हें कांग्रेस के सभापति जवाहरलाल नेहरू की एक चिट्ठी मिली, जिसमें उन्होंने लिखा था कि भारत में हर जगह व्यक्ति की आजादी खतरे में है। इस जन्म सिद्ध अधिकार को पाने के लिए संघ का गठन हुआ है। उन लोगों ने रवीन्द्रनाथ को इसका सभापति बनाया है।

कुछ समय से मुस्लिम समाज के एक वर्ग को बांग्ला साहित्य में मूर्ति पूजा का खतरा महसूस होने लगा था। मुसलमानों में इस बात से नाराजगी थी। ''मोहम्मदी'' नामक मासिक पत्रिका ने रवीन्द्रनाथ के ''गांधारीर आवेदन'' और ''पुजारिनी'' के विषय पर विरोध जताया। उनके अनुसार यह सब इस्लाम विरोधी था। रवीन्द्रनाथ को मजबूरन इसके विरोध में आगे आना पड़ा। उन्होंने ऐसे ही एक लेख में एक आलोचक की बात का जिक्र करते हुए लिखा कि उन्होंने पाप की प्रवृति के बारे में सावधान करते हुए मुझे काफी नसीहतें दी हैं। मैं उन्हें यह समझाना चाहता हूं कि नाटक-कविता आदि में पात्रों के जरिए जो सव बातें कही जाती हैं, उसमें लेखक की कल्पना ही प्रमुख होती है अक्सर वह उस कवि या लेखक के विचार नहीं होते।''

सन् 1937 में इंग्लैंड से अमियचन्द्र चक्रवर्ती ने एक चिट्ठी में रवीन्द्रनाथ से अफ्रीका पर एक कविता भेजने का अनुरोध किया। लंदन में इथोपिया के राजा हाइले सेलासी की यह इच्छा थी। रवीन्द्रनाथ ने ''अफ्रीका'' नाम से एक कविता लिखकर भेज दी। अंग्रेजी में उसका अनुवाद पढ़कर हाइले सेलासी बहुत खुश हुए। उगांडा के राजकुमार नियाबंगो ने उस कविता को बंटू तथा सोहली भाषाओं में अनुवाद करवाया।

19 फरवरी 19२7 को कलकत्ता विश्वविद्यालय का उपाधि वितरण जलसा था। उपाचार्य श्यामाप्रसाद मुखोपाध्याय के कहने पर रवीन्द्रनाथ मुख्य अतिथि बनकर कलकत्ता गए। रवीन्द्रनाथ ने अपना भाषण बांग्ला में पढ़ा। विश्वविद्यालय के इतिहास में यह एक बड़ी बात थी। वहां से वे बंगीय साहित्य सम्मेलन में भाग लेने के लिए चंदन नगर गए।

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