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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

चौथा बयान


''धांय!''

गोली अलफांसे के कान को स्पर्श करती हुई निकल गई। भयानक गति से भागता हुआ घोड़ा एकाएक अब दोनों पैरों पर खड़ा होकर जोर से हिनहिनाया। मगर अलफांसे के ऐड़ लगाते ही वह पुन: हवा से बात करने लगा। वह जानता था कि उसके पीछे आने वाले दुश्मनों की संख्या चार है। और वे चार चालीस के बराबर हैं।

अपने-अपने देश के माने हुए जासूस.. जेम्स बांड, माइक, हुचांग और बागारोफ। चारों ही मौत के फरिश्तों की भांति अलफांसे के पीछे लगे हुए थे। इस समये अलफांसे का घोड़ा एक पहाड़ी दर्रे में दौड़ रहा था.. कई बार पत्थरों से टकराकर घोड़ा लड़खड़ा भी चुका था। किन्तु अपनी योग्यता से अलफांसे ने उसे गिरने से बचा लिया था। अलफांसे के जिस्म पर कपड़े अवश्य थे, किन्तु तार-तार हो चुके थे। जिस्म के विभिन्न स्थानों से खून टपक रहा था। बालों में बुरी तरह धूल अटी हुई थी। सिर के चारों ओर बिखरे बाल, दाढ़ी और मूंछें इस कदर बढ़ी हुई थीं, मानो महीनों से शेव न करवाई हो।

और वास्तव में.. उसे अनुमान नहीं था कि वह कितने दिन उस कैद में रहा।

अलफांसे ----- यह वही अन्तर्राष्ट्रीय अपराधी अलफांसे था-जो यह दावा करता था कि दुनिया की कोई भी शक्ति मुझे मेरी इच्छा के विरुद्ध कैद नहीं कर सकती। वही अलफांसे इस बार एक ऐसी विचित्र कैद में फंसा था कि लाख चाहने के बाद भी वह स्वतन्त्र नहीं हो सका था।

और अब.. जैसे स्वयं प्रक़ृति ने ही उसे उस कैद से बाहर ला पटका था। कैद से बाहर आते ही एक नई मुसीबत उसके सामने आ खड़ी हुई।

जेम्स बांड, हुचांग, माइक और बागारोफ।

उसने तो स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी कि ये चार महान हस्तियां उसे यहां मिल सकती हैं। काफी दिमाग घुमाने के बावजूद भी वह निर्णय नहीं कर पाया था कि दुनिया के विभित्र चार देशों के वे महान जासूस दुनिया से अलग-थलग इस टापू पर क्या कर रहे हैं। हालांकि अलफांसे इन चार जासूसों से इस प्रकार डरकर भागने वाली आसामी नहीं था, किन्तु शस्त्र के नाम पर इस समय उसके पास एक कील तक नहीं थी और उन चारों के पास रिवॉल्वर थे।

कदाचित यही कारण था कि अलफांसे उनकी नजरों से ओझल हो जाना चाहता था।

पीछे आने वाली घोड़ों की टापों की आवाज अलफांसे को अभी तक बता रही थी कि ये लोग उसका पीछा कर रहे हैं। अलफांसे का मस्तिष्क, तीव्रता से कोई ऐसा उपाय सोचने में व्यस्त था, जिससे इन चारों को काबू में किया जा सके।

अभी वह सोच भी नहीं पाया था कि घोड़े के पैर किसी उभरे हुए पत्थर से टकराए।

काफी प्रयासों के बाद भी इस बार अलफांसे न स्वयं सम्भल सका और न ही घोड़े को संभाल सका। वेग से भागता हुआ घोड़ा पत्थरों पर रपटा और एक साथ दो-तीन कलाबाजियां खाकर वह दूर तक लुढ़कता चला गया। अलफांसे का जिस्म हवा में लहराया। चोट इतनी जवरदस्त लगी थी कि उसे अपना मस्तिष्क सुन्न-सा होता नजर आने लगा।

आंखों के समक्ष अन्धकार-सा छाने लगा-किन्तु अपनी आत्मशक्ति का प्रयोग करके ही उसने स्वयं को सम्भाल लिया।

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