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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

ऐसा कहकर भगवान् शिव ने मेरा हाथ पकड़ लिया और श्रीविष्णु को सौंपकर उनसे कहा- 'तुम संकट के समय सदा इनकी सहायता करते रहना। सबके अध्यक्ष होकर सभी को भोग और मोक्ष प्रदान करना तथा सर्वदा समस्त कामनाओं का साधक एवं सर्वश्रेष्ठ बने रहना। जो तुम्हारी शरण में आ गया, वह निश्चय ही मेरी शरण में आ गया। जो मुझमें और तुममें अन्तर समझता है वह अवश्य नरक में गिरता है। ''

त्वां यः समाश्रितो नूनं मामेव सः समाश्रित:।
अन्तरं यश्च जानाति निरये पतति ध्रुवम्।।

(शि० पु० रु० सृ० ख० १०। १४)

ब्रह्माजी कहते हैं- देवर्षे! भगवान् शिव का यह वचन सुनकर मेरे साथ भगवान् विष्णु ने सबको वश में करनेवाले विश्वनाथ को प्रणाम करके मन्दस्वर में कहा-

श्रीविष्णु बोले- करुणासिन्धो! जगन्नाथ शंकर! मेरी यह बात सुनिये। मैं आपकी आज्ञा के अधीन रहकर यह सब कुछ करूँगा। स्वामिन्! जो मेरा भक्त होकर आपकी निन्दा करे, उसे आप निश्चय ही नरकवास प्रदान करें। नाथ! जो आपका भक्त है वह मुझे अत्यन्त प्रिय है। जो ऐसा जानता है उसके लिये मोक्ष दुर्लभ नहीं है।'

मम भक्तश्च यः स्वामिंस्तव निन्दा करिष्यति।
तस्य वै निरये वासं प्रयच्छ नियतं ध्रुवम्।।
त्वद्भक्तो यो भवेत्स्वामिन्मम प्रियतरो हि सः।
एवं वै यो विजानाति तस्य मुक्तिर्न दुर्लभा।।

(शि० पु० रु० सृ० ख० १०।३०-३१ )

श्रीहरि का यह कथन सुनकर दुखहारी हर ने उनकी बात का अनुमोदन किया और नाना प्रकार के धर्मों का उपदेश देकर हम दोनों के हित की इच्छा से हमें अनेक प्रकार के वर दिये। इसके बाद भक्तवत्सल भगवान् शम्भु कृपापूर्वक हमारी ओर देखकर हम दोनों के देखते-देखते सहसा वहीं अन्तर्धान हो गये। तभी से इस लोक में लिंग-पूजा का विधान प्रारम्भ हुआ है। लिंग में प्रतिष्ठित भगवान् शिव भोग और मोक्ष देनेवाले हैं। शिवलिंग की जो वेदी या अर्घा है वह महादेवी का स्वरूप है और लिंग साक्षात् महेश्वर का। लय का अधिष्ठान होने के कारण भगवान् शिव को लिंग कहा गया है; क्योंकि उन्हीं में निखिल जगत् का लय होता है। महामुने! जो शिवलिंग के समीप कोई कार्य करता है उसके पुण्यफल का वर्णन करने की शक्ति मुझमें नहीं है।

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