ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
आवाहन
कैलासशिखरस्थ च पार्वतीपतिमुतममू।
यथोक्तरूपिणं शम्भु निर्गुण गुणरूपिणम्।।
पञ्चवक्त्रं दशभुजं त्रिनेत्रं वृषभध्वजम्।
कर्पूरगौरं दिव्याङ्गं चन्द्रमौलिं कपर्दिनम्।।
व्याघ्रचर्मोत्तरीय च गजचर्माम्बरं शुभम्।
वासुक्यादिपरीताङ्गं पिनाकाद्यायुधान्वितम्।।
सिद्धयोऽष्टौ च यस्याग्रे नृत्यन्तीह निरन्तरम्।
जयजयेति शब्दैश्च सेवितं भक्तपुञ्जकैः।।
तेजसा दुस्सहेनैव दुर्लक्ष्यं देवसेवितम्।
शरण्यं सर्वसत्वानां प्रसन्नमुखपङ्कजम्।।
वेदै: शास्त्रैर्यथागीतं विष्णुब्रह्मनुतं सदा।
भक्तवत्सलमानन्दं शिवमावाहयाम्यहम्।।
'जो कैलास के शिखर पर निवास करते हैं पार्वती देवी के पति हैं समस्त देवताओं से उत्तम हैं जिनके स्वरूप का शास्त्रों में यथावत् वर्णन किया गया है जो निर्गुण होते हुए भी गुणरूप हैं जिनके पाँच मुख, दस भुजाएँ और प्रत्येक मुखमण्डल में तीन-तीन नेत्र हैं, जिनकी ध्वजा पर वृषभ का चिह्न अंकित है अंगकान्ति कर्पूर के समान गौर है जो दिव्यरूपधारी, चन्द्रमारूपी मुकुट से सुशोभित तथा सिर पर जटाजूट धारण करनेवाले हैं जो हाथी की खाल पहनते और व्याघ्रचर्म ओढ़ते हैं जिनका स्वरूप शुभ है जिनके अंगों में वासुकि आदि नाग लिपटे रहते हैं जो पिनाक आदि आयुध धारण करते हैं जिनके आगे आठों सिद्धियाँ निरन्तर नृत्य करती रहती हैं भक्तसमुदाय जय-जयकार करते हुए जिनकी सेवा में लगे रहते हैं दुस्सह तेज के कारण जिनकी ओर देखना भी कठिन है जो देवताओं से सेवित तथा सम्पूर्ण प्राणियों को शरण देनेवाले हैं जिनका मुखारविन्द प्रसन्नता से खिला हुआ है वेदों और शास्त्रों ने जिन की महिमा का यथावत् गान किया है, विष्णु और ब्रह्मा भी सदा जिनकी स्तुति करते हैं तथा जो परमानन्दस्वरूप हैं उन भक्तवत्सल शम्भु शिव का मैं आवाहन करता हूँ।'
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