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शिवसहस्रनाम

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2096

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भगवान शिव के सहस्त्रनाम...


देवासुरगुरुर्देवो देवासुरनमस्कृत:।
देवासुरमहामित्रो देवासुरमहेश्वर:।।११।।

७०६ देवासुरगुरुर्देव: - देवताओं तथा असुरों के गुरुदेव एवं आराध्य, ७०७ देवासुरनमस्कृत: - देवताओं तथा असुरों से वन्दित, ७०८ देवासुरमहामित्र: - देवता तथा असुर दोनों के बड़े मित्र, ७०९ देवासुरमहेश्वर: - देवताओं और असुरों के महान् ईश्वर।।९१।।

देवासुरेश्वरो दिव्यो देवासुरमहाश्रय:।
देवदेवमयोऽचिन्त्यो देवदेवात्मसम्भव:।।९२।।

७१० देवासुरेश्वर: - देवताओं और असुरों के शासक, ७११ दिव्य: - अलौकिक स्वरूपवाले, ७१२ देवासुरमहाश्रय: - देवताओं और असुरों के महान् आश्रय, ७१३ देवदेवमय: -देवताओं के लिये भी देवतारूप, ७१४ अचिन्त्य: - चित्त की सीमा से परे विद्यमान, ७१५ देवदेवात्मसम्भव: - देवाधि-देव ब्रह्माजी से रुद्ररूप में उत्पन्न।।९२।।

सद्योनिरसुरव्याघ्रो देवसिंहो दिवाकर:।
विबुधाग्रचरश्रेष्ठ: सर्वदेवोत्तमोत्तम:।।९३।।

७१६ सद्योनि: - सत्पदार्थों की उत्पत्ति के हेतु, ७१७ असुरव्याघ्र: - असुरों का विनाश करने के लिये व्याघ्ररूप, ७१८ देवसिंहः - देवताओं में श्रेष्ठ, ७११ दिवाकर: - सूर्यरूप, ७२० विबुधाग्रचरश्रेष्ठ: - देवताओं के नायकों में सर्वश्रेष्ठ, ७२१ सर्वदेवोत्तमोत्तम: - सम्पूर्ण श्रेष्ठ देवताओं के भी शिरोमणि।।१३।।

शिवज्ञानरत: श्रीमाच्छिखिश्रीपर्वतप्रिय:।
वज्रहस्त: सिद्धखड्‌गो नरसिंहनिपातन:।।९४।।

७२२ शिवज्ञानरत: - कल्याणमय शिव-तत्त्व के विचार में तत्पर, ७२३ श्रीमान् - अणिमा आदि विभूतियों से सम्पन्न, ७२४ शिखिश्रीपर्वतप्रिय: - कुमार कार्तिकेय के निवासभूत श्रीशैल नामक पर्वत से प्रेम करनेवाले, ७२५ वज्रहस्तः -वज्रधारी इन्द्ररूप, ७२६ सिद्धखड्‌गः - शत्रुओं को मार गिराने में जिनकी तलवार कभी असफल नहीं होती, ऐसे, ७२७ नरसिंहनिपातनः - शरभरूप से नृसिंह को धराशायी करनेवाले।।१४।।

ब्रह्मचारी लोकचारी धर्मचारी धनाधिप:।
नन्दी नन्दीश्वरोऽनन्तो नग्नव्रतधर: शुचि:।।९५।।

७२८ ब्रह्मचारी - भगवती उमा के प्रेम की परीक्षा लेने के लिये ब्रह्मचारीरूप से प्रकट, ७२९ लोकचारी - समस्त लोकों में विचरने वाले, ७३० धर्मचारी - धर्म का आचरण करनेवाले, ७३१ धनाधिपः - धन के अधिपति कुबेर, ७३२ नन्दी - नन्दी नामक गण, ७३३ नन्दीश्वरः - इसी नाम से प्रसिद्ध वृषभ, ७३४ अनन्तः - अन्तरहित, ७३५ नग्नव्रतधर: - दिगम्बर रहने का व्रत धारण करने वाले, ७३६ शुचिः - नित्यशुद्ध।।९५।।

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