उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
|
203 पाठक हैं |
जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘इसके उपरान्त मालवीय जी ने स्पष्ट कह दिया कि मैं हिन्दूसमाज के साथ यह द्रोह करने का साहस नहीं कर सकता। मैं यह अपना अधिकार नहीं मानता।
‘‘तिलक जी निरुत्तर हो चले गये। अगले दिन हिन्दुओं में केवल पण्डित मालवीय जी ने अपनी ओजस्वी भाषा में इस अराष्ट्रीय प्रस्ताव का विरोध किया, परन्तु कांग्रेस से उपस्थित अन्य हिन्दुओं ने इसका समर्थन कर इसे पास कर दिया।
‘‘यह घटना मैंने अपनी पुस्तक के ‘पाकिस्तान का बीज’ अध्याय में लिखी है।’’
‘‘परन्तु यदि उस समय यह प्रस्ताव पास नहीं होता तो क्या होता?’’ तेजकृष्ण ने गम्भीर भाव में कहा, ‘‘जो आन्दोलन सन् १९१९ तथा २१-२२ में चला था, वह न चल सकता और ‘रौलैट ऐक्ट’ का विरोध न हो सकता।’’
नज़ीर ने कहा, ‘‘मैंने इस विषय पर भी अपने विचार पुस्तक में व्यक्त किए है। रौलेट-ऐक्ट का आन्दोलन तो चलता। इस आन्दोलन का कारण हिन्दु-मुसलमान में सुलह नहीं था। यह सर्वथा पृथक् आंदोलन था। हां, इस आंदोलन के नेता महात्मा गाँधी न होकर कोई अन्य व्यक्ति होता। सम्भवतः पण्डित मदनमोहन मालवीय होते। जितना विचारशील और युक्तियुक्त ढंग से इस कानून का विरोध पण्डित मालवीय जी ने वाइसराय की कौंसिल में किया था, वैसा विरोध गाँधी भी नहीं कर सके थे।
|