उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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‘‘परन्तु आपके वर्तमान मिशन का क्या उद्देश्य है?’’ नज़ीर ने पूछ लिया।
‘‘यह यू० के० सरकार का एक गुप्त मिशन है। यह क्या है और क्यों है, मैं बता नहीं सकता। इसको गुप्त रखने की मुझसे शपथ ली गयी है। गुप्त का अर्थ ही यह है कि दो के अतिरिक्त तीसरे किसी को भी न बताया जाये। इस पर भी इतना तो बता ही सकता हूं कि यह एक भयावह कार्य है। इसमें मेरी मृत्यु भी हो जानी सम्भव है।’’
‘‘तो फिर आपने अपने विवाह के साथ ही इस भयानक कार्य को स्वीकार क्यों किया है?’’
‘‘यह मेरी प्रकृति में है। कोई कार्य जितना अधिक भयावह होता है, उतना ही उसको स्वीकार करने में मुझे उत्साह मिलता है। मुझे मरने से कभी भय नहीं लगा। हमारे एक महान् नीतिकार ने यह कहा है कि शोक न करने योग्य वस्तुओं का शोक करना मूर्खता है। बुद्धिमान लोग न मरे हुओं का शोक करते हैं और न जीते हुओं पर प्रसन्नता प्रकट करते हैं।’’
‘‘तो फिर यह खुशी और गमी किसलिए बनी हुई हैं?’’ नज़ीर ने विस्मय प्रकट करते हुए पूछ लिया।
‘‘वही विद्वान् कह गया है कि मरता-जीता यह शरीर है। जो शरीर में चेतन तत्त्व है वह न मरता है और न जीता है। वह हमारी आत्मा है।’’
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