उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘जब आत्मा न मरता है और न मारा जा सकता है तो फिर मरने का भय नहीं होता। रहा सुख का भोग। यह मिलना होगा तो मरने के उपरान्त भी मिल जायेगा।’’
‘‘यही तो संदिग्ध है कि मरने के बाद यह ‘लाइफ ऐलिमैंट’ (जीवन तत्त्व) रहेगा अथवा नहीं?’’
‘‘इस विषय में विश्वास उत्पन्न करने के लिए हिन्दू जीवन-मीमांसा को समझने की आवश्यकता है। वैसे आत्म-तत्त्व का होना और इसका अक्षर और अविनाशी होना युक्ति और प्रमाण से भी समझा जा सकता है।’’
इस प्रकार के वार्त्तालाप में डेढ़ दिन की यात्रा समाप्त हुई और दोनों तेईस सितम्बर सन् १९६२ की प्रातःकाल छः बजे पालम हवाई पत्तन पर पहुंच गए।
नज़ीर ने दिल्ली हवाई पत्तन पर उतरते हुए कहा, ‘‘यह तो दिल्ली है। मैं समझी थी कि आप कराची जा रहे हैं।’’
‘‘तुम्हें वहां नहीं ले जाऊंगा। तुम यहां दिल्ली में ही रहोगी।’’
‘‘यह तो ठीक है! मैं भी पाकिस्तान जाने में अपनी खैर नहीं मानती।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘इसके साथ मेरे जन्म के इतिहास का सम्बन्ध है।’’
जहाज़ से उतर पत्तन के भवन की ओर आते हुए तेजकृष्ण ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारा परिचय पाने के लिए व्याकुल हो रहा हूं। अभी तक जो कुछ तुमने बताया है वह परिचय नहीं कहा जा सकता। वह तो केवल मात्र एक झलक ही है।’’
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