उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
नज़ीर ने कहा, ‘‘धैर्य रखिये। सब कुछ हो जाएगा। कहीं आराम से बैठ एकान्तवास का अवसर भी तो नहीं मिला। अभी तक तो दिल्ली से लन्दन और लन्दन से दिल्ली हवाई जहाज में ही हमारी भेंट का अधिक समय व्यतीत हुआ है।’’
‘‘ठीक है! मैं समझता हूं कि एकान्तवास का समय अब आ गया है।’’
‘‘तो किस होटल में चलेंगे?’’
‘‘यह भी अभी नहीं जानता। मुझे दिल्ली में यू० के० मिशन को अभी रिपोर्ट करनी चाहिए।’’
तेजकृष्ण हवाई जहाज से अपना ब्रीफ केस उठाये बाहर निकल आया। दोनों के पास सूटकेस भी नहीं थे। नज़ीर के हाथ में केवल हैंड बैग था।
टैक्सी पर सवार हो दोनों यू० के० हाई कमिश्नर के कार्यालय में साढ़े सात बजे पहुंच गए। जब तेजकृष्ण ने अपना कार्ड भीतर भेजा तो उसे तुरन्त बुला लिया गया। तेज ने नज़ीर को टैक्सी में ही बैठे रहने दिया।
तेजकृष्ण हाई कमिश्नर से भली भांति परिचित था। दिल्ली से लन्दन जाने से पूर्व वह उससे मिलकर गया था। अतः उसके भीतर पहुंचते ही हाई कमिश्नर ने उठ मुस्कराते हुए हाथ मिलाकर पूछ लिया, ‘‘मिस्टर बागड़िया! हमें बहुत प्रसन्नता हुई है कि आपको ही हमारी सहायता के लिए भेजा गया है, परन्तु सूचना मिली है कि आपके साथ आपकी नव-विवाहिता पत्नी भी है?’’
‘‘जी! मैं उसके साथ ‘हनीमून’ पर जा रहा था कि मुझे इधर आने की आज्ञा हो गयी है।’’
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