उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘हां! यहां काम सदा तेज़ी से ही होता है। काम कुछ अधिक था भी नहीं।’’
टैक्सी चाणक्यपुरी की एक बिल्डिंग के नीचे जा खड़ी हुई। एक चौकीदार बिल्डिंग के नीचे खड़ा था। टैक्सी के पहुंचते ही उसने झुक कर सलाम की और पूछ लिया, ‘‘आप मिस्टर बागड़िया हैं?’’
‘‘हां!’’
‘‘मैं आपकी प्रतीक्षा में खड़ा हूं। मालिक मकान का टेलीफोन आया था कि आप आ रहे हैं।’’
‘‘तुम यहां क्या हो?’’
‘‘मैं आपके फ्लैट का चपरासी, चौकीदार और रसोइया हूं। साथ ही मालिक के मकान का रक्षक भी हूं।’’
‘‘ओह!’’ तेजकृष्ण ने उस व्यक्ति के पीछे-पीछे सीढ़ियां चढ़ते हुए पूछ लिया क्या नाम है।’’
उस व्यक्ति ने बिना घूमे ही कह दिया, ‘‘मोहसिन खाँ! मैं पाकिस्तान कोहाट का रहने वाला हूं, मगर भारत का नागरिक हूं।’’
तेजकृष्ण पाकिस्तानियों को अपने आस-पास एकत्रित होते देख विचार मग्न हो गया। आगे-आगे मोहसिन खां था, उसके उपरान्त तेजकृष्ण और उसके पीछे नज़ीर थी। ऊपर पहुंच फ्लैट का प्रवेश द्वार खोल वह एक ओर खड़ा हो गया। तेजकृष्ण और नज़ीर भीतर गये तो वे ड्राइंग रूम में पहुंच गए।
मोहसिन ने अब पीछे-पीछे चलते हुए पूछा, ‘‘हजूर का कुछ सामान टैक्सी में है?’’
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