उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘नहीं! कुछ नहीं।’’
‘‘तो उसको विदा कर दीजिये।’’
तेजकृष्ण ने दस-दस रुपये के दो नोट मोहसिन को देकर कहा, ‘‘उसे विदा कर दो।’’
जब वह नीचे उतर गया तो नज़ीर ने कहा, ‘‘यह पाकिस्तानी मालूम होता है।’’
‘‘मैं सायंकाल हाई कमिश्नर से मिल कर इसके विषय में बात करूंगा।’’
‘‘मैं जब इस्लामाबाद से दिल्ली आयी थी तो मेरे साथ वहां से एक साहब आये थे और पाकिस्तानी हाई कमिश्नर के एक अधिकारी यहां से पत्तन पर विदा करने गए थे। वह अधिकारी कहीं यहां दिल्ली में अभी हुआ तो मिल सकता है। वह मुझे पहचानता है। इस्लामाबाद से साथ आया आदमी तो यहां रहने के लिए ही आया था।’’
इस समय मोहसिन टैक्सी वाले को भाड़ा देकर शेष दो रुपये लेकर आ गया। वह जब देने लगा तो तेज ने कह दिया ‘‘इसे तुम रखो। कभी फुटकर खर्च के लिए इस्तेमाल करना होगा।’’
मोहसिन रुपये जेब में रख पूछने लगा, ‘‘हजूर! इस समय चाय लेंगे अथवा कॉफी?’’
नज़ीर ने कह दिया, ‘‘कॉफी।’’
नज़ीर ने सलवार और कुर्ता पहना हुआ था, परन्तु अंग्रेज़ औरतों की भांति अंग्रेज़ी बोलती थी। इससे मोहसिन ने नज़ीर के मुख पर देखा और उसकी नीली आँखें देख समझ गया कि यह कोई अंग्रेज़ औरत है, मगर पाकिस्तानी ढंग की पोशाक पहने हुए है।
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