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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...

3


दोनों अभी बिस्तर में ही थे कि मोहसिन वस्त्र ड्राई क्लीन करवा कर ले आया। उसने खांस कर अपने आने की सूचना बैड रूम के बन्द द्वार के बाहर खड़े होकर दे दी और रसोई घर में ब्रेक-फास्ट तैयार करने चला गया।

तेजकृष्ण लपक कर पलंग से उतरा और ‘‘बैड-शीट’’ अपने शरीर पर लपेट दरवाजा खोल ड्राइंग रूम में झांक कर देखने लगा कि कपड़े आ गए हैं अथवा नहीं।

सब कपड़े सैण्टर टेबल पर लिफाफों में बन्द पड़े थे। वह यह देख कि ड्राइंग रूम में कोई नहीं, वहां से कपड़ों के लिफाफे ले आया। कपड़े सन्तोषजनक साफ किए हुए थे। दोनों ने पहने और डायनिंग हाल में चले आये।

मोहसिन ने पौरिज, उबले अण्डे और चाय बनाकर लाने में दस मिनट लगाये। पति-पत्नी अभी खाने के कमरे में आए ही थे कि मोहसिन प्लेट लगाने आ गया।

तेजकृष्ण ने अपने वस्त्रादि साथ न होने की सफाई मोहसिन को दे दी। उसने कहा, ‘‘हमें एक क्षण के नोटिस पर घर से हवाई जहाज की ओर चलना पड़ा था। इस कारण वस्त्र नहीं ला सके। आज हम बाजार से कपड़े खरीदना चाहते हैं। कहाँ अच्छी दुकान होगी?’’

‘‘यहां भी है। मगर मैं आपको राय दूंगा कि आप कनाट प्लेस में किसी अच्छी-सी दुकान पर चले जाइए और वहां से सब-कुछ मिल जाएगा।’’

तेजकृष्ण को मोहसिन बहुत ही समझदार और कार्य-कुशल नौकर प्रतीत हुआ। वह उससे प्रसन्न था।

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