उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
ब्रेक-फास्ट के उपरान्त नज़ीर और तेजकृष्ण दोनों टैक्सी में कनाट प्लेस को चले गए। वहां से एक-एक ‘रेडी-मेड’ सूट खरीद और दो-दो सूट नए तैयार करने का आर्डर दे आए। वे लंच के समय से एक घण्टा पूर्व ही लौट आए।
उनके आने पर मोहसिन ने ‘कोल्ड ड्रिंक’ लाकर दे दिया और पूछने लगा, ‘‘लंच किस समय लेंगे?’’
‘‘डेढ़ बजे।’’
मोहसिन गया तो नज़ीर ने कहा, ‘‘मेरा चित्त अभी भरा नहीं।’’
‘‘किस बात से?’’
नज़ीर ने प्रेम भरी दृष्टि से पति की ओर देखा तो तेजकृष्ण ने कह दिया, ‘‘यह भरने में तो बहुत वर्ष लगेंगे। मैं चाहता हूं कि अब हम अपना परिचय कुछ व्याख्या में दे दें तो अधिक ठीक होगा। हमें परस्पर भली-भांति जान लेना चाहिए।’’
‘‘हां! यह आपकी ओर मेरा ‘ड्यू’ है। देखिए, मैं आपको अपनी पुस्तक का वह अध्याय सुना देती हूं जो मैंने अपने विषय में लिखा है।’’
‘‘धन्यवाद!’’
‘‘मगर पहले आप यह बताइये कि वह पंड़ितायिन आपको कब मिली थीं?’’
‘‘कौन पंडितायिन?’’
‘‘वहीं जिसको वापस ऑक्सफोर्ड भेज दिया है।’’
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