उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘हां, तो लीजिए। मैंने पुस्तक के इस ‘चैप्टर’ में लिखा है। सन् १९३७ के मार्च मास में लार्ड हैमिल्टन की भतीजी इरीन हैमिल्टन अपने लन्दन के पैलेस से निकल धूप का रसास्वादन करने हाईड पार्क में टहल रही थी कि मिलिटरी पोशक में रायल मिलिटरी स्कूल, सैण्डहर्स्ट का एक युवक विद्यार्थी चलता-चलता रुक मिस हैमिल्टन की ओर देख मुस्कराने लगा।
‘‘मिस इरीन ने समझा कि वह उसे पहचान गया है। कदाचित् उस कैडेट ने उसे अंकल की बैठक में देखा है। इस पर भी उसे न पहचान वह चलती गयी। वह कैडेट उसके पीछे-पीछे चलने लगा। इससे लड़की घबरायी और खड़ी हो उस व्यक्ति की ओर देखने लगी। कैडेट मुस्करा रहा था।
‘‘आपको मुझसे कुछ काम है?’’ इरीन ने पूछा।
‘‘हां, मैं समझता हूं कि मैंने आपको कहीं देखा है।’’
‘‘क्या काम है?’’ मिस इरीन ने पूछ लिया। वह अपने दिल में धड़कन अनुभव करने लगी थी। उस समय उसे यह धड़कन किसी अज्ञात भय के कारण प्रतीत हुई थी। परन्तु उस पार्क में थोड़े ही अन्तर पर अन्य कई लोग भी थे, जो कई दिन के उपरान्त निकली धूप में घूम रहे थे। इस कारण भय का कारण नहीं था।
‘‘उस युवक ने लड़की की सुन्दर नीली आँखों में देखते हुए कहा, ‘यहां पार्क में खड़े-खड़े काम बता नहीं सकता।’’
तो हमारे अंकल के मकान में आइये। मैं वहां ही ठहरी हुई हूं। वह यहां से समीप ही है। हैमिल्टन पैलेस, पार्क के गेट से सौ गज के अन्तर पर ही है।’’
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