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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘ओह! तो आप लार्ड हैमिल्टन के परिवार की है। तभी।’

‘तभी क्या?’ लड़की ने पूछ लिया।

‘‘मैंने आपको वहीं देखा होगा। मैं इस गेट के सामने ही होटल डी-लक्स में ठहरा हुआ हूं। यदि आप एक प्याला चाय का निमन्त्रण स्वीकार करें तो वह स्थान हैमिल्टन पैलेस से अधिक ठीक रहेगा।’’

‘‘मैं वहां अकेली कैसे जा सकूंगी?’’

‘आप अकेली क्यों होगी? मैं आपके साथ जो हूंगा।’ हंसते हुए उस युवक ने कह दिया।

‘‘इस पर लड़की भी हंस पड़ी और आकर्षित हुई उसके साथ चल पड़ी। दोनों होटल में गए और कैडेट के कमरे में जा पहुंचे। एक घण्टा भर इरीन वहां रही और फिर प्रति सप्ताह रविवार के दिन वहां उस कैडेट से मिलने का वचन दे चली आयी। उस एक घण्टे में ही वे दोनों, न केवल शरीर से, वरन् मन से भी पति-पत्नी बन गए थे। युवक कैडेट अयूब खां था। दोनों प्रति रविवार उसी होटल में मिलते रहे। कैडेट तो रविवार प्रातःकाल आता था। इरीन मध्याह्न भोजन के समय आ जाती थी और वे रात डिनर तक इकट्ठे रहते थे। इरीन रात अपने अंकल के पास चली जाती और कैडेट जैंटलमैन रात दस बजे अपने होस्टल में जा पहुंचा करता था।

‘कठिनाई तब हुई जब इरीन के गर्भ स्थित हुआ और वह छुपाया नहीं जा सका। तब दोनों में वचन हुआ कि वह प्रसव तक उसी होटल में ठहरेंगी, वह अपनी माँ तथा अंकल को लिख दे कि उसने एक हिन्दुस्तानी युवक से विवाह कर लिया है और वह उसके साथ रहने लगी है; प्रसव हस्पताल में हो और तब तक युवक की परीक्षा पास हो उसे कमीशन मिल जाएगी। तब वह उसे लेकर हिन्दुस्तान चला जाएगा।

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