लोगों की राय

उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

203 पाठक हैं

जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘इरीन युवक अयूब खां पर इतनी मोहित हो चुकी थी कि वह मान गयी और घर वालों से सम्बन्ध-विच्छेद कर होटल में ही दिन-रात रहने लगी।’’

‘‘अयूब खां को जब कमीशन मिली तो इरीन अभी सात महीने के गर्भ से थी। इस पर वह यह वचन दे कि वह उसके बच्चा हो जाने पर आकर उसे ले जायेगा। इरीन हैमिल्टन, जो अपने को मिसेज अयूब समझने लगी थी के एक लड़की हुई और उसका नाम पिता के कहने पर नज़ीर रख दिया गया।

‘‘जब नज़ीर की माँ यात्रा करने योग्य हुई तो उसने इरीन के पिता को लिखा कि वह आकर उसे ले जाये। तब हिन्दुस्तान से पत्र आने बन्द हो गये। पीछे नज़ीर की माँ की नज़ीर की नानी से सुलह हो गयी और वह स्काटलैण्ट ऐडनबरा के समीप अपनी माँ के साथ रहने लगी।

‘‘यह है नज़ीर के जन्म की कथा। नज़ीर की माँ को पता चला कि लैफ्टिनेण्ट कर्नल अयूब खां ने हिन्दुस्तान में एक और शादी कर ली है। इसके विषय में नज़ीर की माँ ने अपने पति को लिखा, परन्तु उसने उत्तर नहीं दिया।

‘‘नज़ीर बड़ी होने लगी तो उसकी नानी उससे प्यार करने लगी और वह अपने मरने पर नज़ीर और नज़ीर की माँ को बहुत कुछ दे गयी है। इस धन के ब्याज से माँ-बेटी दोनों सुखपूर्वक लन्दन में रहने लगी थीं। लड़की नजी़र ने ऑक्सफोर्ड में इतिहास में एम० ए० किया तो वह हिन्दुस्तान में अपने बाप की सूरत-शक्ल देखने के लिए बेताब हो उठी।

‘‘एक बार सन् १९५१ में, जब नज़ीर तेरह वर्ष की थी, तो नज़ीर अपनी माँ के साथ अपने पिता को मिलने गयी थी। वह उस समय फाइनल में पढ़ती थी। स्कूल से घर आयी तो माँ ने कहा, ‘चाय लेकर जल्दी तैयार हो जाओ।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book