उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘क्या है माँ? नज़ीर ने पूछा।
‘‘माँ ने बताया, ‘तुम्हारे पिता से मिलने जा रही हूं। तुम भी चलो।’’
‘‘नज़ीर के मन में भी उत्सुकता उत्पन्न हो गयी। वह विचार किया करती थी कि माँ क्यों नहीं अपने पति के पास रहती। वह जानने की उत्कट इच्छा रखती थी माँ में कोई दोष है अथवा पिता में। एक बात वह जानती थी कि उसकी माँ ने कभी एक भी शब्द अपने पति के विरुद्ध नहीं कहा था।
‘‘नज़ीर ने चाय ली और कपड़े बदल माँ के साथ चलने के लिए तैयार हो गयी।
‘‘मार्ग में टैक्सी में बैठे हुए माँ ने लड़की को बताया, ‘आज के समाचार पत्र में मैंने पढ़ा था कि तुम्हारे पिता लन्दन मैडिकल कालेज के हस्पताल में बीमार पड़े हैं। यह समय रोगियों से मिलने का होता है। इस कारण मैं बिना सूचना के उनसे मिलने जा रही हूं।’’
‘‘परन्तु मम्मी!’ नज़ीर ने पूछा, ‘वह तो तुम्हें कभी पत्र भी नहीं लिखते।’’
‘‘यह उनका काम है। मैं उनसे प्रेम करती हूं। इसलिए उनकी बीमारी का समाचार सुन मैं उनको देखने जाने से मन को रोक नहीं सकी।’’
‘‘इस बात ने नज़ीर के मन में से पिता के लिये कटुता दूर कर दी। माँ बेटी दोनों हस्पताल में पहुंची और लैफ्टिनेण्ट जनरल अयूब खां ऑफ पाकिस्तान के कमरे का नम्बर जान वहां जा पहुंची।
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