उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘वहां के प्राइम मिनिस्टर की किसी ने हत्या कर दी है और मैं इस उथल-पुथल में ऊपर की उठने की आशा करने लगा हूं।’
‘‘हत्या का समाचार सुन नज़ीर की माँ गम्भीर विचार में पड़ गयी। लैफ्टिनेण्ट जनरल नज़ीर की माँ का लम्बा मुख देख बोले, ‘क्यों, तुम्हें किस बात की चिन्ता लग रही है?’’
‘‘ज्यों-ज्यों आपकी पदोन्नति होती जाती है, मैं आप तक पहुंचना कठिन और कठिन हो रहा अनुभव कर रही हूं।’’
‘‘मैंने तो तुम्हें कई बार लिखा है कि वहां ऐसे ही आ जाओ जैसी हो।’’
‘और आपके हरम में सम्मिलित हो जाऊं?’’
‘नहीं। तुम्हें पृथक् मकान ले दूंगा। एक बात तुममें बहुत अच्छी दिखायी दी है। तुम वैसी ही तरोताज़ा हो जैसी कभी थीं।’
‘मैं तो चाहती हूं।’ नज़ीर की माँ ने कहा, ‘आप पुनः वही जण्टलमैन कैडट होते तो मैं उसके साथ स्काटलैण्ड की पहाड़ियों में चल कर रह सकती। मुझे धन-दौलन की आवश्यकता नहीं। परमात्मा की कृपा से निर्वाह के योग्य है। मैं शेष जीवन आपके साथ रह कर गुजारना चाहती हूं।’
‘लड़की को मेरे पास भेज दो। यह सम्भव है कि यह पाकिस्तान के गवर्नर की लड़की होने से वहां की राजनीति में उज्ज्वल भूमिका निभाये।’
‘‘नज़ीर की माँ ने कहा, ‘यह यहां पढ़ती है। सदा श्रेणी में अव्वल रहती है और कालेज की उच्च शिक्षा पा सकेगी। इसकी रुचि इतिहास पढ़ने में है। इसका ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में बहुत अच्छा प्रबन्ध है।’’
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