उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
|
203 पाठक हैं |
जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
4
लंच के उपरान्त तेजकृष्ण आधा घण्टा आराम करने के लिए सोने के कमरे में गया तो नज़ीर वहां जा पहुंची। अतः आधा घण्टे के स्थान दो घण्टे के आराम की आवश्यकता पड़ गयी। वह चार बजे उठा और हड़बड़ी में कपड़े पहन भारत सरकार के विदेश विभाग के प्रवक्ता और कुछ संसद सदस्यों से मिलने चला गया। वह लौटा तो नज़ीर अभी भी सोयी हुई थी। उस समय रात के आठ बज गए थे। दोनों ने गरम जल से स्नान किया तो शरीर हल्का हो गया और रात का खाना खाकर सो गये।’’
अगले दिन नज़ीर उठी तो तेजकृष्ण टाइप राइटर पर बैठा अपनी ‘बुलेटिन’ तैयार कर रहा था।
नज़ीर ने आँखें मलते हुए कहा, ‘‘किस समय जागे थे?’’
‘‘प्रातः चार बजे।’’
‘‘मैं तो कल के खेल-कूद से इतनी थक गयी थी कि अभी भी सोने को जी चाहता है।’’
‘‘अभी छः बजे हैं। तुम एक घण्टा तो सो ही सकती हो। तब तक मैं अपना काम समाप्त कर लूंगा।’’
‘‘यह भी आपके ‘सीक्रेट’ काम से सम्बन्ध रखता है क्या?’’
‘‘हां। मैं कल की भाग-दौड की रिपोर्ट तैयार कर रहा हूं। अभी डेढ़ पृष्ठ का ‘मैटर’ और है। इसमें कुछ समय लगेगा। फिर इसे दोबारा पढ़ कर बन्द कर तैयार कर लूँगा। यह आज ब्रेक-फास्ट के उपरान्त ठीक स्थान पर पहुंचा सकूंगा।’’
|