उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
नज़ीर ने करवट ली और फिर खुर्राटें भरने लगी।
ब्रेक फास्ट के उपरान्त तेजकृष्ण अपने पिछले दिन की कारगुजारी की रिपोर्ट लेकर यू० के० हाई कमिश्नर के पास जा पहुंचा। वह वहां पहुंचा तो कमिश्नर साहब किसी अन्य व्यक्ति से बातचीत कर रहे थे। इस कारण तेज को आधा घण्टा भर भेंट के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ी। वह व्यक्ति जिससे हाई कमिश्नर मिस्टर मिचल मिल रहे थे, एक बर्मी प्रतीत होता था। वह बाहर निकला तो तेजकृष्ण को भीतर बुला लिया गया। तेजकृष्ण ने जेब से ‘बुलेटिन’ का लिफाफा सामने रखते हुए कहा, ‘‘मैं ‘डेली रिपोर्ट’ आपके पास भेजा करूंगा।’’
‘‘ठीक है। मगर तुमने अपने से मिलने वालों को अभी भी लन्दन टाइम्स का पत्र-प्रतिनिधि ही बताया है।’’
‘‘मेरे पास अभी भी वही ‘आईडैन्टिटी कार्ड’ है और मैं उसी का प्रयोग कर रहा हूं।’’
मिस्टर मिचल ने लिफाफा खोल रिपोर्ट पढ़ी और पढ़कर पूछ लिया, ‘‘तो तुम समझते हो कि भारत सरकार को विश्वास है कि चीन के साथ युद्ध नहीं होगा?’’
‘‘यह मेरा अनुमान है। वैसे पार्लियामैण्ट में तो प्रधान मन्त्री का यह वक्तव्य है कि भारत अब सब प्रकार से अपनी रक्षा के लिए तैयार है। वह अवस्था अब नहीं रही, जैसी अक्साई चिन में सड़क बनने के समय थी। परन्तु मेरे विचार में यह एक ओर तो चीनियों को ‘ब्लफ’ करने (धोखा देना) का प्रयास है तथा दूसरी ओर इस देश के सरल चित्त व्यक्तियों का साहस बंधाने के लिए है। इस विषय में मैंने आज नेफा जाने के लिए परमिट माँग लिया है। मुझे विश्वास दिलाया गया है कि परमिट मिल जायेगा।’’
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