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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘कितनी सेना नेफा में एकत्रित की हुई समझ में आयी है?’’

‘‘दस सहस्त्र से अधिक नहीं हो सकती। इसके अतिरिक्त वह उस पूर्ण क्षेत्र में फैली हुई है और क्षेत्र में सड़कें, पुलें तथा यातायात का प्रबन्ध अच्छा नहीं है। इस कारण वह दस सहस्त्र को भी मैं केवल दो-तीन सौ से अधिक नहीं समझता। यह एक चौकी में सैनिकों की संख्या है। यातायात का प्रबन्ध ठीक न होने के कारण किसी एक चौकी पर आक्रमण होने पर कोई भी दूसरी चौकी के लोग अथवा हैड-क्वार्टर के लोग वहां पहुंच नहीं सकते।’’

हाई कमिश्नर तेज के उत्तर सुन उसके बुलेटिन के पीछे ही नोट्स लिख रहा था।

जब तेज अपना वक्तव्य समाप्त कर चलने को तैयार हुआ तो मिस्टर मिचल ने कह दिया, ‘‘रात मैंने तुम्हारे विषय में लंदन से बातचीत की है और वहां से मुझे संकेत मिला है कि तुम्हें अपनी पत्नी से सावधान रहना चाहिए। यद्यपि उसके विपरीत कुछ नहीं, इस पर भी उसके स्वभाव के विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। तुम्हारी पत्नी की माँ विश्वस्त देशभक्त औरत समझी जाती है। उसने द्वितीय विश्व युद्ध में पूरे पांच वर्ष तक वालण्टियर के रूप में कार्य किया था। परन्तु लड़की चार वर्ष से कुछ अधिक काल तक पाकिस्तान में रहकर आयी है। वहाँ उसमें कुछ अन्य प्रकार की प्रवृत्ति बन सकती है।’’

तेजकृष्ण ने कह दिया, ‘‘मैंने उसे कह दिया है कि मैं एक सरकारी ‘सीक्रेट’ मिशन पर काम कर रहा हूं और उसे उसमें झांकने की स्वीकृति नहीं दे सकता। वह यद्यपि इतिहास की स्नातिका है, इस पर भी सक्रिय राजनीति में वह रुचि लेती प्रतीत नहीं होती।’’

‘‘ठीक है। एक दिन मैं तुम्हें और उसे ‘डिनर’ पर आमन्त्रित करूंगा। परन्तु उसे बताना नहीं कि किस प्रयोजन के लिए निमन्त्रण है। मैं स्वयं भी उसके विषय में अपना स्वतन्त्र विचार बनाना चाहता हूं।’’

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