उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
उस दिन भी तेजकृष्ण दिन भर घूमता रहा। वह नज़ीर से यह कह कर घर से निकला था कि वह लंच लेने नहीं आ सकेगा। अतः वह घर पर चाय के समय ही पहुंचा।
चाय लेते हुए नज़ीर ने बताया, ‘‘मैं ग्यारह बजे के लगभग एक-दो नावल खरीदने कनाट प्लेस में एक बुक स्टाल पर गयी थी। जब पुस्तकों की दुकान से बाहर निकली तो पाकिस्तान के हाई कमिश्नर के वही अधिकारी जो मुझे दिल्ली हवाई पत्तन पर लंदन जाते हुए छोड़ने आये थे, बगल की दुकान से निकलते हुए मिल गए। जब मैं पाकिस्तान इस्लामाबाद में थी तो वह ‘फादर’ के प्राइवेट सेक्रेटरी थे और मुझे भलीभांति पहचानते थे। वह मुझे किताबों की दुकान से निकलते देख विस्मय में मेरी ओर देखने लगे।
‘‘हम दोनों में भेंट हुई, तदनन्तर वैंगर रेस्टोरैण्ट में हम चाय लेने चले गए। वहां मैंने उनको बता दिया है कि मैंने आपसे विवाह कर लिया है। वह आपको जानते हैं। आप उनसे पाकिस्तान में कई बार मिले हैं।
‘‘जब मैंने उनके पूछने पर आपका नाम और आपके समाचार-पत्र का नाम बताया तो वह बहुत प्रसन्न हुए। उनका कहना था कि मेरा चुनाव ठीक ही है।’’
‘‘वह आपसे मिलने की इच्छा कर रहे थे। उनकी इच्छा प्रतीत होती थीं कि मैं उनको चाय पर यहां बुलाऊं, परन्तु मैंने आपसे पूछे बिना उनको निमंत्रण नहीं दिया। इस पर भी उन्होंने हमारे टेलीफोन का नम्बर नोट कर लिया है।’’
‘‘कौन है वह?’’
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