उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘एक मिस्टर अज़ीज़ अहमद हैं। पाकिस्तान सेना से अवकाश प्राप्त लेफ्टिनैण्ट हैं। वहां के गवर्नर जनरल के प्राईवेट सेक्रेटरी रहे हैं।
‘‘जब मैं पाकिस्तान में थी तब उन्होंने वहां के हालात जानने में मेरी बहुत सहायता की थी। आजकल वह दिल्ली स्थित पाकिस्तान हाई कमिश्नर के मिलिटेरी अटैची हैं। वैसे वह हाई कमिश्नर साहब के प्राइवेट सेक्रेटरी के रूप में काम करते हैं।’’
‘‘मैं समझता हूं कि मैं उनसे इस्लामाबाद में मिला हूं। एक अधेड़ आयु के, नोकदार दाढ़ी और शर्रै मूंछें रखे रहते हैं। कभी शेरवानी और पायजामा पहनते हैं और कभी इंगलिश सूट।’’
तेजकृष्ण विचार कर रहा था कि पत्नी पाकिस्तानी, मकान का बेयरा पाकिस्तान और अब पत्नी का मित्र पाकिस्तानी। वह समझने लगा था कि पाकिस्तान उसे चारों ओर से घेर रहा प्रतीत होता है। परन्तु उसकी अपनी सरकार पाकिस्तान की शत्रु नहीं है। इससे कुछ अधिक चिन्ता व्यक्त न करता हुआ पूछने लगा, ‘‘तो अज़ी़ज़ साहब को कब चाय पर बुलाना चाहोगी?’’
‘‘यह आप बताइये। कब आपको अवकाश होगा?’’
‘‘मैं कल बता सकूंगा। अभी तो कल सारा दिन मैं व्यस्त हूं।’’
आज नज़ीर चाय पर ही अपने आप अपनी पुस्तक का एक ‘चैप्टर’ में लिखा वृत्तान्त बताने लगी। उसने कहा, ‘‘यह अज़ीज़ साहब और इनकी पत्नियों से मेरा परिचय है। जब मैं वहां गयी थी तो इनकी चार पत्नियां थीं। एक का देहान्त मेरे वहां रहते ही हो गया था। अब इनकी तीनों पत्नियां इनके साथ यहां हैं।’’
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