उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
तेजकृष्ण पत्नियों की बात सुन मुस्करा दिया। नज़ीर ने कहा ‘‘मेरी पुस्तक का एक ‘चैप्टर’ है पाकिस्तान का आकर्षण। अर्थात् मैं वहां कैसे पहुंची! मैं अपनी कालेज की शिक्षा समाप्त कर घर बैठी विचार कर रही थी कि आगे जीवन कैसे चलाऊं कि एक दिन समाचार पत्रों में पढ़ा कि पाकिस्तान में सैनिक तानाशाही स्थापित हो गयी है। मेजर जनरल अयूब खां ने पाकिस्तान का शासन अपने हाथ में ले लिया है और उन्होंने पार्लियामेण्ट तोड़ दी है। स्वयं गवर्नर जनरल का पद लेकर सैनिक शासन स्थापित कर दिया है।
‘‘इस समाचार को पढ़कर मुझे उस दिन की बात स्मरण आ गयी जिस दिन मैं माँ के साथ ‘फादर’ को मिलने के लिए हस्पताल गयी थी। वह सन् १९५१ अक्टूबर महीने की बात थी। १६ अक्टूबर को इस्लामाबाद में तत्कालीन प्रधान मन्त्री लियाकतअली खां को किसी ने गोली चला कर मार डाला था। इस घटना को सुनकर ‘फादर’ ने कहा था कि इससे वह अपनी पदोन्नति की आशा करने लगे हैं। अतः उस दिन के समाचार से मैं समझ गयी थी कि किस प्रकार की पदोन्नति वह चाहते थे और वह हो गयी है।
‘‘इस समाचार को पढ़कर मैं पाकिस्तान जाने के स्वप्न लेने लगी थी। उसी दिन मैंने माँ से कहा, माँ! मैं पाकिस्तान जाना चाहती हूं।’’
‘‘माँ को भी उस दिन की बात स्मरण आ गयी थी। उसने कहा, ‘तो तुम वहां की राजनीति में उज्ज्वल भूमिका सम्पन्न करने की इच्छा करने लगी हो?’’
‘नहीं माँ! मैं तानाशाही शासन का अंग नहीं बन सकती। मैं इंग्लैंड की परम्परा से ओत-प्रोत प्रजातन्त्रात्मक पद्धति से बंधी हुई हूं। मेरा मन वहां की राजनीति में भाग लेने को नहीं करता! मैं पाकिस्तान का इतिहास लिखना चाहती हूं।’’
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