उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
|
203 पाठक हैं |
जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘तब ठीक है। तुम पासपोर्ट के लिए याचिका कर दो। मेरी ओर से तुम्हें अपने निश्चय में सफल होने का आशीर्वाद है।’’
‘‘मैंने याचिका की और मैं एक दिन सन् १९५८ में लंदन से हवाई जहाज में कराची और फिर पाकिस्तान जहाज से इस्लामाबाद जा पहुंची।
‘‘गवर्नर जनरल बहादुर के निवास स्थान का पता करती हुई मैं विशाल गवर्नमेण्ट हाउस के द्वार पर पहुंच गयी। मैंने अपना कार्ड भीतर भेजा और गवर्नर बहादुर से भेंट की प्रार्थना कर दी।
‘‘कार्ड भीतर गया और दस मिनट के भीतर ही द्वार से भीतर ले जाकर एक इमारत के प्रतीक्षालय में ले जाकर मैं बिठा दी गयी। वहां पर मुझे आधा घण्टा प्रतीक्षा करनी पड़ी। इस प्रतीक्षा के उपरान्त एक प्रौढ़ावस्था के व्यक्ति सैनिक पहरावे में आये और मुझे मेरा कार्ड दिखा पूछने लगे, ‘यह कार्ड आपका है?’’
‘‘कार्ड पर मेरा नाम लिखा था नज़ीर एम० ए० ऑक्सन, ३0५, क्राफर्ड ऐवेन्यू लन्दन।
‘मैंने कार्ड देख कर कह दिया, जी! इस कार्ड पर लिखे नाम वाली मैं ही हूं।’’
‘‘उस आदमी ने ध्यान से मेरे मुख पर देखा और फिर कुछ विचार करने लगा। मैंने पूछ लिया, ‘‘क्या देख रहे हैं?’’
‘‘वह बोला, ‘मैं गवर्नर जनरल बहादुर का पी० ए० हूं और मैं देख रहा था कि आपसे भेंट अवश्य हो सकेगी। आपकी सूरत ‘सर्टन’ पास-पोर्ट है।’’
|